संयुक्त राष्ट्र ‘खुला समुद्र’ संधि (UN ‘HIGH SEAS’ TREATY) | Current Affairs | Vision IAS
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संयुक्त राष्ट्र ‘खुला समुद्र’ संधि (UN ‘HIGH SEAS’ TREATY)

04 Oct 2025
1 min

सुर्खियों में क्यों?

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग हेतु संधि (BBNJ समझौता) को 60वें देश का अनुसमर्थन प्राप्त होने के बाद यह लागू हो जाएगी। इस संधि को 'खुला समुद्र संधि' (हाई सीज ट्रीटी) के नाम से भी जाना जाता है।

BBNJ समझौते के बारे में

  • BBNJ संधि का उद्देश्य राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार (अनन्य आर्थिक क्षेत्र) से बाहर के क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को सुनिश्चित करना है। 
  • यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) के अंतर्गत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। 
    • BBNJ समझौता, UNCLOS के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता होगा। इसके अलावा, अन्य दो समझौते हैं: 
      • 1994 भाग-XI कार्यान्वयन समझौता (जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज और निष्कर्षण से संबंधित है) और
      • 1995 संयुक्त राष्ट्र मत्स्य भंडार समझौता (जो पारगमनशील और अत्यधिक प्रवासी मत्स्य भंडार के संरक्षण और प्रबंधन से संबंधित है)। 
  • यह समझौता एक वित्तपोषण तंत्र तथा संस्थागत व्यवस्थाएं भी स्थापित करता है। इसमें पक्षकारों का सम्मेलन (Conference of the Parties), विभिन्न सहायक निकाय, एक क्लियरिंग-हाउस मैकेनिज्म और एक सचिवालय शामिल हैं।
  • इस संधि में प्रावधान किया गया था कि यह 60 देशों द्वारा अनुसमर्थन प्राप्त होने के उपरांत 120 दिन बाद लागू होगी। 
    • 30 सितंबर 2025 तक, इस संधि पर 145 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं तथा 74 देशों द्वारा इसे अनुसमर्थन प्रदान कर दिया गया है।
    • भारत ने संधि पर हस्ताक्षर तो किए हैं, किंतु अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया है। 
    • जो देश UNCLOS के सदस्य नहीं हैं, वे भी BBNJ समझौते में शामिल हो सकते हैं। 

संधि के प्रमुख स्तंभ

  • समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPAs): यह संधि खुले समुद्र में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों तथा अन्य संरक्षण एवं प्रबंधन उपायों की स्थापना के लिए एक तंत्र का निर्माण करेगी। 
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्र सामान्यतः स्पष्ट रूप से परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र होते हैं, जो समुद्री जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए कानूनी या अन्य प्रभावी तरीकों के तहत मान्यता प्राप्त, समर्पित और प्रबंधित होते हैं। 
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधन (Marine Genetic Resources - MGRs): यह संधि खुले समुद्री जीवों (जैसे जीवाणु, प्रवाल, गहरे समुद्री स्पंज आदि) से प्राप्त आनुवंशिक पदार्थों के वाणिज्यिक उपयोग से उत्पन्न वित्तीय और गैर-वित्तीय लाभों के साझाकरण की व्यवस्था करती है। इन आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग औषधि, सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य और जैव प्रौद्योगिकी में किया जा सकता है। 
  • क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण: इसका उद्देश्य ज्ञान, कौशल और प्रौद्योगिकी साझाकरण के माध्यम से विकासशील देशों को संधि को लागू करने में सहायता करना है। 
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: राष्ट्रीय सीमाओं से परे क्षेत्रों में गहरे समुद्र में खनन (Deep-sea mining) जैसी खुले समुद्र की गतिविधियों का पर्यावरणीय आकलन करना तथा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कार्य करना आवश्यक होगा, ताकि परिणामों को पारदर्शी रूप से साझा किया जा सके।

संधि के अपवाद

  • यह संधि किसी भी युद्धपोत, सैन्य विमान या नौसेना सहायक पोत पर लागू नहीं होगी। 
  • यह मत्स्यन और उससे संबंधित गतिविधियों पर लागू नहीं होगी, क्योंकि ये गतिविधियाँ अन्य संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत विनियमित होती हैं। 
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों (MGRs) और उनकी डिजिटल अनुक्रम जानकारी के उपयोग से संबंधित दायित्व किसी पक्ष की सैन्य गतिविधियों पर लागू नहीं होंगे, जिनमें सरकारी पोतों या विमानों द्वारा की जाने वाली गैर-व्यावसायिक सेवाएं भी शामिल हैं। 
    • हालांकि, ये दायित्व सदस्य देशों की गैर-सैन्य गतिविधियों पर लागू होंगे। 

संधि का महत्व

  • महासागरीय शासन में महत्वपूर्ण रिक्तियों की पूर्ति: यह समझौता पृथ्वी की लगभग आधी सतह और महासागर के 95% भाग के लिए साझा शासन का प्रावधान करता है। 
    • वर्तमान में उच्च समुद्री क्षेत्रों का केवल 1% भाग ही संरक्षित है। 
  • समानता और न्याय को बढ़ावा: संधि का उद्देश्य एक अधिक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना है, जो सभी देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों, की आवश्यकताओं को ध्यान में रखती हो। 
    • वानुअतु जैसे छोटे द्वीपीय देशों के लिए यह संधि निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो अब तक उनकी पहुंच से बाहर था।
  • तापमान में कमी: यह संधि जलवायु परिवर्तन और महासागरीय अम्लीकरण के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है। इस संधि का उद्देश्य लचीलेपन को बढ़ाना है तथा इसमें प्रदूषक-भुगतान सिद्धांत (polluter-pays principle) और विवाद निवारण तंत्र से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। 
  • पारंपरिक और स्थानीय ज्ञान: यह समझौता आदिवासी समुदायों और स्थानीय समूहों द्वारा संजोए गए पारंपरिक ज्ञान के महत्व को स्वीकार करता है और उसे अपने मूल सिद्धांतों और परिचालन प्रक्रियाओं में सम्मिलित करता है। 
  • 2030 एजेंडा को साकार करने में सहायक: यह संधि प्रत्यक्ष रूप से सतत विकास लक्ष्य (SDG) 14 का समर्थन करती है, जिसका उद्देश्य सभी प्रकार के समुद्री प्रदूषण को रोकना और उसे महत्वपूर्ण रूप से कम करना है। 
    • यह संधि "30x30" लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी आवश्यक है, जो वर्ष 2030 तक पृथ्वी की 30% भूमि और समुद्री क्षेत्र को संरक्षित करने की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है। 
  • भारत के लिए महत्व: यह संधि "महासागरों का संविधान" कहे जाने वाले UNCLOS के प्रति भारत के दीर्घकालिक समर्थन की पुष्टि करती है। 
    • यह भारत की ब्लू इकॉनमी नीति और डीप ओशन मिशन जैसी पहलों के पूरक के रूप में कार्य करती है।

चुनौतियां 

  • सार्वभौमिक अनुसमर्थन की कमी: इस संधि की प्रभावशीलता अनिश्चित है क्योंकि अमेरिका, चीन और भारत जैसे विश्व के प्रमुख देशों ने अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया है। 
  • राष्ट्रीय हितों के साथ टकराव: संधि में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) की स्थापना का प्रावधान है, जो कई देशों के विवादित समुद्री क्षेत्रों (जैसे दक्षिण चीन सागर) में क्षेत्रीय दावों से टकराता है। 
  • प्रवर्तन से संबंधित कठिनाइयां: इस संधि में कोई दंडात्मक प्रवर्तन निकाय स्थापित नहीं किया गया है; यह मुख्यतः अलग-अलग देशों पर पृथक रूप से निर्भर करता है कि वे नियमों का उल्लंघन करने वाले अपने पोतों और कंपनियों को विनियमित करें। 
    • इसके अलावा, संधि में जवाबदेही को लागू करने की ठोस व्यवस्था नहीं है, क्योंकि यह समुद्री आनुवंशिक अनुसंधान में सक्रिय उच्च-आय वाले देशों के लिए यह बाध्य नहीं करती कि वे अपने द्वारा प्राप्त संसाधनों या अर्जित लाभों का प्रकटीकरण करें। 
  • सीमित दायरा और विसंगतियां: संधि में यह सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस तंत्र नहीं है कि विकसित देश अपनी प्रतिबद्धताओं के अनुसार प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के संबंध में निम्न और मध्यम-आय वाले देशों की सहायता करेंगे। 

आगे की राह 

  • प्रमुख समुद्री शक्तियों को अनुसमर्थन के लिए प्रोत्साहित करना: प्रमुख समुद्री शक्तियों का अनुसमर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा, G20 और संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन जैसे मंचों का उपयोग कर राजनयिक गति को बढ़ाया जाना चाहिए। 
  • प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना: संधि के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र (UN) के अंतर्गत एक वैश्विक अनुपालन और निगरानी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। 
  • राष्ट्रीय हितों के साथ टकराव का समाधान: समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को राष्ट्रीय दावों के साथ सुसंगत बनाने के लिए क्षेत्रीय सहयोग ढांचे (जैसे दक्षिण चीन सागर के लिए आसियान या हिंद महासागर के लिए IORA) को बढ़ावा देना। 
  • विकासशील देशों के लिए सुनिश्चित समर्थन: वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) का महासागर कार्यक्रम और हरित जलवायु कोष के माध्यम से वित्तीय और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तंत्र स्थापित करना चाहिए। 
  • पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को मजबूत करना: अनियोजित और आकस्मिक गतिविधियों (तेल रिसाव, जहाज दुर्घटनाएं, गहरे समुद्र में खनन दुर्घटनाएं) को शामिल करने के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) का विस्तार किया जाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS) 

  • UNCLOS, जिसे प्रायः "महासागरों का संविधान" कहा जाता है, समुद्रों और महासागरों के उपयोग को नियंत्रित करने वाली प्राथमिक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। 
    • इसे वर्ष 1982 में अपनाया गया, और यह 1994 में लागू हुई। 
  • सदस्य देश: अब तक भारत सहित 171 सदस्य देशों ने इसका अनुसमर्थन किया है। हाल ही 20 सितंबर 2025 को किर्गिज़स्तान ने इसका अनुसमर्थन किया था। 
  • समुद्री क्षेत्र
    • प्रादेशिक समुद्रआधार रेखा से 12 समुद्री मील (nm) तक → तटीय राज्य की पूर्ण संप्रभुता। 
    • सन्निहित क्षेत्र24 समुद्री मील तक → सीमा शुल्क, आव्रजन, स्वच्छता और सुरक्षा के लिए प्रवर्तन अधिकार। 
    • अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ)200 समुद्री मील तक → समुद्री संसाधनों के अन्वेषण और उपयोग के लिए संप्रभु अधिकार।
    • उच्च समुद्र: राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे का क्षेत्र → नौवहन, उड़ान, मत्स्यन, अनुसंधान की स्वतंत्रता। 
  • गहरे समुद्र तल पर खनन (Deep Seabed Mining): राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्री तल को "मानव जाति की साझा विरासत" माना गया है, जिसका प्रबंधन अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority) द्वारा किया जाता है। 
  • विवाद निवारण: संधि के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून न्यायाधिकरण (ITLOS) जैसे तंत्रों की स्थापना की गई है, जो समुद्री विवादों के समाधान के लिए कार्य करते हैं।

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