
सुर्खियों में क्यों?
IISER भोपाल ने भारत के बड़े जलाशयों में गाद जमाव यानी अवसादन के कारण उत्पन्न संकटों का व्यापक आकलन किया है।
अन्य संबंधित तथ्य
- यह अध्ययन केंद्रीय जल आयोग द्वारा 'भारत के जलाशयों में गाद जमाव का सार' (Compendium on Sedimentation of Reservoirs in India) शीर्षक से जारी रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।
- गाद जमाव या अवसादन (Sedimentation) ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मृदा के कण अपरदित होकर बहते जल या अन्य माध्यमों द्वारा जल निकायों में ठोस कणों की परतों के रूप में जमा हो जाते हैं।
- इस अध्ययन में 300 से अधिक बड़े जलाशयों को शामिल किया गया जिनकी भंडारण क्षमता 100 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक है।
अध्ययन में गाद जमाव से जुड़े मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

- जल भंडारण क्षमता में कमी: गाद जमाव के कारण कई जलाशयों ने अपनी जल भंडारण क्षमता का लगभग 50% से अधिक खो दिया है।
- अनुमान है कि 2050 तक गोदावरी के अलावा पूर्व की ओर बहने वाली नदियों और ताप्ती के अलावा पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों के जलाशयों की 50% से अधिक भंडारण क्षमता खत्म हो जाएगी।
- क्षेत्रीय भिन्नता: इस मामले में हिमालयी क्षेत्र (HR), पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां (नर्मदा-तापी), पूर्व की ओर बहने वाली नदियां, और गंगा का मैदान (IGP) सबसे अधिक संकट वाले क्षेत्र माने गए हैं।
- सभी क्षेत्रों में, हिमालयी क्षेत्र के जलाशयों में गाद जमाव के कारण वार्षिक जल भंडारण क्षमता की हानि सबसे अधिक पाई गई।
- गाद जमाव के मुख्य कारक: वनों की कटाई, कृषि भूमि से अपवाह, कमजोर मृदा वाले इलाकों में मानसून के कारण मृदा अपरदन, और भूमि-उपयोग में अनियंत्रित बदलाव।
- परिणाम: गाद जमा होने से नदियों का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित होता है, जल सुरक्षा घटती है, ऊर्जा उत्पादन कम हो जाता है, कृषि उत्पादकता घटती है और जल को लेकर संघर्षों का खतरा बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए: गोदावरी के अलावा पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ (जहाँ लगभग 160 जलाशय हैं) दक्षिण भारत की कृषि और औद्योगिक जल आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाती हैं।
भारत में बांध सुरक्षा से जुड़े अन्य प्रमुख मुद्दे

- बांधों का पुराना होना: 2023 की स्थिति के अनुसार, भारत के बड़े बांधों में से 1,065 बांध 50-100 साल पुराने थे, जबकि 224 बांध 100 साल से भी अधिक पुराने थे।
- संरचनात्मक विफलताएं: ये मुख्य रूप से रिसाव, क्षतिग्रस्त पाइपिंग, और/ या कमजोर नींव के कारण होती हैं।
- भूकंप से नुकसान का खतरा: उदाहरण के लिए, 2001 में भुज (गुजरात) में आए भूकंप के कारण चांग बांध की नींव कमजोर हो गई थी।
- ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट का खतरा: उदाहरण के लिए, 2023 में, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट से आई बाढ़ की वजह से चुंगथांग बांध (सिक्किम) टूट कर बह गया था।
- ओवरटॉपिंग (बाढ़ के पानी का बांध के शिखर के ऊपर से बहना): भारत में बांध की पहली दर्ज विफलता (1917 में तिगरा बांध की विफलता) भी ओवरटॉपिंग के कारण हुई थी।
- प्रबंधन/ नियमों के अनुपालन संबंधी मुद्दे: उदाहरण के लिए, गांधी सागर (मध्य प्रदेश) की CAG ऑडिट रिपोर्ट में उजागर किया गया था कि राज्य बांध सुरक्षा संगठन (SDSO) ने आवश्यक उपायों पर केंद्रीय जल आयोग की सिफारिशों का अनुपालन नहीं किया।
भारत में बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई पहलें
- बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021: यह बांधों की विफलता को रोकने के लिए विशिष्ट बांधों की उचित निगरानी, संचालन और रखरखाव का प्रावधान करता है। इस अधिनियम में केंद्र और राज्य स्तर पर संस्थागत ढाँचा स्थापित करने का प्रावधान है।
- राष्ट्रीय स्तर पर: राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण।
- राज्य स्तर पर: राज्य बांध सुरक्षा समिति (State Committee on Dam Safety: SCDS) और राज्य बांध सुरक्षा संगठन (State Dam Safety Organization: SDSO)।
- बड़े बांधों का राष्ट्रीय रजिस्टर (National Register of Large Dams: NRLD): यह CWC द्वारा संकलित और संरक्षित बड़े बांधों का राष्ट्रव्यापी रजिस्टर है।
- बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (Dam Rehabilitation and Improvement Project: DRIP): DRIP के दूसरे और तीसरे चरण में 19 राज्यों में 736 बांधों के व्यापक पुनर्वास की परिकल्पना की गई है।
- इस परियोजना को विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank: AIIB) से ऋण प्राप्त होता है।
- भूकंपीय जोखिम विश्लेषण सूचना प्रणाली (Seismic hazard analysis information system: SHAISYS) उपकरण: इसका उद्देश्य भूकंपीय बलों की सीमा और बांध संरचनाओं की सुरक्षा पर उनके प्रभाव का पता लगाना है।
- बांध सुरक्षा समीक्षा पैनल: कुछ राज्यों ने अपने बांधों के व्यापक ऑडिट के लिए ये पैनल बनाए हैं।
- अन्य पहलें:
- भूकंप से बांधों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र {MNIT जयपुर (राजस्थान)} में स्थित),
- डैम हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन मॉनिटरिंग एप्लीकेशन (DHARMA),
- राज्यों द्वारा बांध सुरक्षा समीक्षा पैनल का गठन, आदि।
बांध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक कदम
- वर्ल्ड कमीशन ऑन डैम्स: इसकी स्थापना 1998 में विश्व बैंक और IUCN ने की थी। इसका उद्देश्य बड़े बांधों का 'विकास पर पड़ने वाले प्रभावों' की समीक्षा करना और बांधों की योजना बनाने, निगरानी व डीकमीशनिंग (अप्रयुक्त होने पर हटाना) के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना है।
- इंटरनेशनल कमीशन ऑन लार्ज डैम्स (ICOLD): यह 1928 में स्थापित एक गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह डैम इंजीनियरिंग में ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- इंडियन नेशनल कमेटी ऑन लार्ज डैम्स (INCOLD): यह एक भारतीय समिति है जो ICOLD के साथ संवाद करती है।
भारत में बांध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आगे की राह
- गाद जमाव का प्रबंधन:
- जापान के सेडीमेंट बाईपास सिस्टम और स्विट्जरलैंड की कण्ट्रोल्ड सेडीमेंट फ्लशिंग जैसी अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिए।
- अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग तरीका लागू करना।
- अत्यधिक असुरक्षित क्षेत्रों में, वनरोपण, एकीकृत जलसंभर प्रबंधन पद्धतियों, और समय-समय पर गाद निकालने के संचालन जैसे लक्षित कदम गाद के प्रवाह को कम कर सकते हैं।
- अपरदन नियंत्रण संरचनाएं जैसे- चेक डैम्स, तलछट के प्रवाह को कम कर सकते हैं।
- भूमिगत बांध (सब-सरफेस डैम्स): जापान जैसे देशों में सतही बांधों के विकल्प के रूप में ये बनाए गए हैं। भारत में भी इसे अपनाया जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: उदाहरण के लिए, अत्याधुनिक निगरानी और सेंसिंग तकनीक का उपयोग (बांध संरचना में बदलावों की निगरानी के लिए सैटेलाइट्स का उपयोग), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)-आधारित सेंसर का उपयोग आदि।
- अन्य पहलें:
- समय-समय पर स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा अनिवार्य रूप से बांध का निरीक्षण।
- जो बांध अधिक असुरक्षित हो चुके हैं, उन्हें सूचीबद्ध किया जाना चाहिए और फिर चरणबद्ध तरीके से बंद किया जाना चाहिए।
- संकटों को कम करने वाले सबसे प्रभावी उपायों को निर्धारित करने और बांध सुरक्षा से संबंधित कार्यों को प्राथमिकता देने के लिए जोखिम-स्तर आधारित निर्णय लेने की प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।
निष्कर्ष
भारत के बांध गाद जमाव, पुराना हो जाने, भूकंपीय व जलवायु संबंधी खतरों और नियमों का सही से अनुपालन नहीं होने जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और देश के जल संसाधनों की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए विश्व की सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाने, अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रणनीतियाँ लागू करने और असुरक्षित संरचनाओं को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की आवश्यकता है।