सुर्खियों में क्यों?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने "जल गुणवत्ता की पुनर्बहाली के लिए प्रदूषित नदी खंड - 2025" शीर्षक से आकलन रिपोर्ट जारी की है।
अन्य संबंधित तथ्य
- CPCB, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड/प्रदूषण नियंत्रण समितियों के सहयोग से देश में जलीय संसाधनों की जल गुणवत्ता का आकलन करने के लिए राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Water Quality Monitoring Programme: NWMP) संचालित करता है।
- CPCB ने देश में प्रदूषित नदी खंडों की पहचान की प्रक्रिया 2009 से शुरू की थी।
प्रदूषित नदी खंड के बारे में:
- प्रदूषित नदी खंड: किसी नदी अपवाह मार्ग में दो या अधिक प्रदूषित स्थान जो निरंतर क्रम में स्थित हों, उन्हें एक खंड (stretch) के रूप में चिन्हित किया जाता है और उसे प्रदूषित नदी खंड माना जाता है।
- मापदंड: वे नदी खंड जहां बायो-केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) 3 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/L) से अधिक हो, उन्हें CPCB द्वारा प्रदूषित नदी खंड के रूप में पहचाना जाता है।
- BOD जल की गुणवत्ता आकलन का एक प्रमुख संकेतक है और यह आर्गेनिक पदार्थ को विघटित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन को मापता है।
- श्रेणियां: अधिकतम BOD स्तर के आधार पर प्रदूषित नदी खंड को पांच प्राथमिकता वाले वर्गों (I से V) में वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण के लिए: प्राथमिकता वर्ग I – जहां निगरानी स्थलों पर BOD सांद्रता 30.1 mg/L से अधिक पाई गई।
- प्रदूषित खंड: देशभर में 32 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में 271 नदियों (645 में से) में 296 प्रदूषित नदी खंड पाए गए।
- कुल प्रदूषित नदी खंड की संख्या 2018 में 351 थी, जो 2025 में घटकर 296 हो गई।
- भौगोलिक वितरण: महाराष्ट्र में अब भी सबसे अधिक 54 प्रदूषित नदी खंड हैं।
- प्रमुख प्रदूषित नदी खंड: इनमें दिल्ली की यमुना, अहमदाबाद की साबरमती, मध्य प्रदेश की चंबल, कर्नाटक की तुंगभद्रा और तमिलनाडु की सरबंगा नदियां शामिल हैं।
नदी प्रदूषण के स्रोत:
- अशोधित सीवेज: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, प्रतिदिन 60% से अधिक अशोधित सीवेज जल सीधे नदियों में प्रवाहित किया जाता है।
- CPCB की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की राष्ट्रीय सूची (2021) के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 72,368 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) सीवेज उत्पन्न होता है, जो स्थापित शोधन क्षमता से कहीं अधिक है।
- अशोधित औद्योगिक अपशिष्ट: रसायन, चीनी, कागज और चर्म उद्योग जैसे क्षेत्र विषाक्त रसायनों से युक्त अपशिष्ट जल उत्पन्न करते हैं, जो जल स्रोतों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
- अन्य स्रोत: नगरीय ठोस अपशिष्ट, कृषि अपवाह: रेत खनन और अवैध अतिक्रमण।
नदियों के कायाकल्प की रूपरेखा:
- कानूनी रूपरेखा:
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974: इस अधिनियम के तहत पर्यावरण मामलों में योजना बनाने और नियमावली तैयार करने के लिए केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य स्तर पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) की स्थापना की गई हैं। ये संस्थाएं पर्यावरण मानकों को लागू करती हैं।
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977: यह अधिनियम कुछ उद्योगों द्वारा उपयोग किए गए जल पर शुल्क लगाता है। इस राशि का उपयोग प्रदूषण नियंत्रण गतिविधियों के लिए किया जाता है।
- पर्यावरण (संरक्षण) नियम: पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित ये नियम औद्योगिक उत्सर्जन के लिए मानक निर्धारित करते हैं।
- अपशिष्ट प्रबंधन नियम: सरकार ने ठोस अपशिष्ट, जैव चिकित्सा अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट आदि पर नियम अधिसूचित किए हैं।
- नदी कायाकल्प कार्यक्रम:
- नमामि गंगे कार्यक्रम: इसे 1985 की गंगा कार्य योजना (GAP) की जगह पर आरंभ किया गया है। इसका कार्यान्वयन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga: NMCG) द्वारा किया जा रहा है।
- यमुना कार्य योजना: 1993 में शुरू की गई इस कार्य योजना का उद्देश्य यमुना नदी खंड की सफाई करना है।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)-केन्द्रीय सहायता प्राप्त योजना: यह योजना गंगा बेसिन को छोड़कर अन्य पहचाने गए नदी खंडों में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NWQM): राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स के नेटवर्क के माध्यम से यह कार्यक्रम केंद्र और राज्य सरकारों को जल प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और न्यूनीकरण पर सलाह देता है तथा नदियों और कुओं में जल गुणवत्ता के मानक निर्धारित करता है।
- सीवेज अवसंरचना के लिए योजनाएं: कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT), स्मार्ट सिटी मिशन,स्वच्छ भारत मिशन।
प्रमुख सिफारिशें:
- स्रोत पर प्रदूषण नियंत्रण: प्रदूषण के स्रोतों की पहचान और प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए जैसे कि सीवेज शोधन संयंत्र (STPs) / अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र (ETPs) की कार्यशीलता/स्थिति की निगरानी करनी चाहिए, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और प्रसंस्करण सुविधाओं के प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए, आदि।
- बेसिन प्रबंधन: इसमें नदी के जलग्रहण क्षेत्र/बेसिन का प्रबंधन और बाढ़ के मैदानों की सुरक्षा एवं प्रबंधन शामिल हैं। जैसे कि बेहतर सिंचाई पद्धतियों को अपनाना, बाढ़ के मैदानों की सुरक्षा और प्रबंधन, वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण, नदी का न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह (e-flow) बनाए रखना और नदी के दोनों किनारों पर वृक्षारोपण।
- पर्यावरणीय प्रवाह (e-flow) का अर्थ है हर समय नदी के अपवाह में जल की पर्याप्त मात्रा और गुणवत्ता सुनिश्चित करना ताकि ताजे जल और ज्वारनदमुखी पारिस्थितिक तंत्रों के साथ-साथ उन पारिस्थितिक तंत्रों पर निर्भर मानव आजीविका और रहन-सहन को सुरक्षित रखा जा सके। (ब्रिस्बेन घोषणा-पत्र, 2007)
- अतिक्रमण हटाना: बाढ़ के मैदानों से अतिक्रमण हटाकर जैव विविधता उद्यान स्थापित करना नदी कायाकल्प का एक महत्वपूर्ण घटक माना जाना चाहिए।
- सीवेज शोधन: सीवेज शोधन संयंत्र (STP) की ओर बहाये जाने वाले सीवेज मार्गों का उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए और शोधित सीवेज जल के उपयोग पर जोर दिया जाना चाहिए ताकि भूजल या सतही जल का दोहन कम किया जा सके।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स, रिमोट सेंसिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग रियल टाइम में निगरानी और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए किया जा सकता है।
निष्कर्ष
प्रदूषित नदी खंडों की घटती संख्या दर्शाती है कि सामूहिक प्रयास धीरे-धीरे परिणाम देने लगे हैं। सीवेज और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके, उद्योगों के लिए कड़ाई से नियमों का पालन सुनिश्चित करके और रियल टाइम में निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भारत अपनी नदियों को समृद्धि की जीवन रेखा में बदल सकता है।