सुर्खियों में क्यों?
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पहाड़ी राज्यों की विशिष्ट कमजोरियों को अधिक सटीक ढंग से दर्शाने के लिए 16वें वित्त आयोग से आपदा जोखिम सूचकांक (Disaster Risk Index: DRI) फिर से तैयार करने का आग्रह किया है।
भारतीय हिमालयी राज्यों में अधिक आपदाएं आने के कारणभू-भौतिक कारण:
जलवायु का प्रभाव:
सामाजिक-आर्थिक कारण:
मानवजनित कारण:
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आपदा जोखिम सूचकांक (DRI)
- मापने का तरीका: DRI एक समग्र माप है जो किसी क्षेत्र के विभिन्न आपदाओं से जुड़े जोखिम के स्तर को मापता है। इसका उपयोग आपदा जोखिम से निपटने के लिए वित्त-पोषण में किया जाता है। इसे निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है:
- आपदाओं की संभावना और इनकी गंभीरता का आकलन करना।
- आपदा प्रवण और जोखिम स्तरों का मापना।
- साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने का समर्थन।
- आपदा शमन और इससे निपटने की तैयारियों के लिए संसाधन आवंटन का मार्गदर्शन करना।
- शुरुआत: 15वें वित्त आयोग (2021-26) ने आपदा से निपटने के लिए फंड आवंटित करने हेतु DRI को औपचारिक रूप से अपनाया। आयोग ने प्रत्येक राज्य के DRI स्कोर को राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि (National Disaster Response Fund: NDRF) और राज्य आपात निधि के वितरण के फार्मूले में शामिल किया।
- घटक: DRI एक समग्र स्कोर पर पहुंचने के लिए खतरों की संभाव्यता (70 का स्कोर) और वल्नेरेबिलिटी (30 का स्कोर) का उपयोग करता है।
- खतरों में मुख्य रूप से भूस्खलन, बाढ़, भूकंप, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसी घटनाओं की संभाव्यता पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- वल्नेरेबिलिटी का आकलन करने के लिए एक बुनियादी उपाय के रूप में गरीबी रेखा से नीचे (BPL) वाली आबादी का उपयोग किया जाता है।
भारत में आपदा जोखिम से निपटने हेतु वित्त-पोषण
- नई पद्धति: 15वें वित्त आयोग ने राज्य-वार आवंटन के लिए एक नई पद्धति अपनाई, जिसने पहले की व्यय-आधारित पद्धति का स्थान लिया। यह नई पद्धति तीन कारकों का मिश्रण है:
- क्षमता (जो पिछले व्यय के माध्यम से दिखाई देती है),
- जोखिम का प्रभाव (प्रभावित क्षेत्रफल और जनसंख्या) और
- विपदा की प्रवणता तथा वल्नेरेबिलिटी (आपदा जोखिम सूचकांक)।
- आपदा शमन कोष: 15वें वित्त आयोग ने राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (National Disaster Mitigation Fund: NDMF) और राज्य आपदा शमन कोष (State Disaster Mitigation Fund: SDMF) के गठन की सिफारिश की।
- परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार ने NDMF का गठन कर दिया है, और अब तक तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों ने SDMF स्थापित करने की सूचना दी है।
- SDMF में केंद्र के हिस्से के रूप में केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिए 75% (पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए 90%) का योगदान करती है।
आपदा जोखिम वित्त-पोषण (DRF) से जुड़ी चिंताएं और सीमाएं
- एकसमान मैट्रिक्स: 'वन साइज फिट्स ऑल' तरीका पहाड़ी राज्यों, तटीय क्षेत्रों और संकट वाले अन्य क्षेत्रों के विशिष्ट संकटों का सही से आकलन नहीं करता है।
- उदाहरण के लिए- मैट्रिक्स में भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल स्फोट, वनाग्नि और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) जैसे खतरों को शामिल नहीं किया गया है, जिनकी संख्या हाल के दिनों में बढ़ी है।
- अपर्याप्त संसाधन आवंटन: कुछ राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश का DRI स्कोर कम होने के कारण उन्हें 15वें वित्त आयोग से पर्याप्त संसाधन नहीं मिलते, जबकि यह राज्य अधिक और गंभीर आपदाओं का सामना करता है।
- भौगोलिक असमानताएं: भौगोलिक रूप से बड़े राज्यों को अधिक धनराशि मिलती है, भले ही वे प्राकृतिक आपदाओं के कम जोखिमों का सामना कर रहे हों। इससे संसाधनों का असमान वितरण होता है।
- पिछले व्यय को अधिक महत्व: वर्तमान व्यवस्था पिछले सात वर्षों में राहत उपायों पर हुए औसत व्यय पर भी बहुत अधिक निर्भर करता है। 70% आवंटन इसी मानदंड पर आधारित होता है।
- इस कारण जिन राज्यों ने पहले अधिक खर्च किए हैं, उन्हें अब भी अधिक धनराशि मिलती है, भले ही वर्तमान में उनका जोखिम स्तर कम हो।
आगे की राह
- अनुकूली DRI: वैज्ञानिक रूप से सत्यापित DRI फार्मूला तैयार किया जाए जिसमें विपदा, वल्नेरेबिलिटी, जोखिम-का प्रभाव, और लचीलापन (रेजिलिएंस) से जुड़े संकेतकों को शामिल किया जाए।
- साथ ही, इसमें आपदाओं की सूची का विस्तार करके भूस्खलन, बादल स्फोट, हिमस्खलन और कीट हमलों को शामिल करना चाहिए।
- भौगोलिक विशिष्टता: DRF में, एकल भौगोलिक क्षेत्र पर विचार करने की बजाय, प्राकृतिक आपदाओं के खतरे वाले भौगोलिक उप-क्षेत्रों, जैसे कि पहाड़ी क्षेत्र, आर्द्रभूमि और समुद्र तटों के विशिष्ट खतरों को ध्यान में रखकर विचार करने की आवश्यकता है।
- सामाजिक-आर्थिक संकेतकों को शामिल करना: गरीबी-आधारित जोखिम (वल्नेरेबिलिटी) मूल्यांकन की जगह समग्र जोखिम स्कोर का उपयोग किया जाना चाहिए।
- NDMA के समग्र सूचकांक में असुरक्षित मकान, सामाजिक अवसंरचना, उद्योग, ग्रामीण-शहरी आबादी, वनों की कटाई आदि कारकों को शामिल किया गया है। यह आपदाओं के संभावित जोखिम की अधिक सटीक तस्वीर प्रस्तुत करता है।
- डेटा एकीकरण: आपदा-जोखिम वित्तपोषण (DRF) आवश्यकताओं का बेहतर आकलन करने के लिए रिमोट सेंसिंग, IoT सेंसर और पंचायत-स्तरीय मानचित्रण के जरिए स्थानीय डेटा संग्रह को मजबूत करने और जिला आपदा डेटा भंडार स्थापित करने की आवश्यकता है।
- समय-समय पर समीक्षा: DRF पद्धति की हर पाँच वर्ष में एक बार समीक्षा की जाए ताकि यह जलवायु और आपदा संबंधी अद्यतन आंकड़ों के अनुरूप बनी रहे।
निष्कर्ष
आपदा जोखिम वित्तपोषण (DRF) भारत की आपदा से निपटने की गवर्नेंस प्रणाली का एक प्रमुख स्तंभ है, जो संसाधनों के आवंटन और रेजिलिएंस योजना के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन, क्षेत्रीय असमानताओं और एक-दूसरे से जुड़ी जटिल आपदाओं के दौर में, DRF को पहाड़ी क्षेत्रों के विशिष्ट संकटों, स्थानीय अनुकूलन क्षमताओं और जलवायु की वास्तविकताओं को ध्यान में रखना होगा। एक पुनर्गठित और न्यायसंगत DRF फ्रेमवर्क न केवल वित्तीय न्याय सुनिश्चित करेगा, बल्कि भारत को जलवायु-अनुकूल और 'आपदा से निपटने के लिए तैयार भविष्य' की दिशा में सशक्त रूप से आगे बढ़ाएगा।