महिलाओं का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) {Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 (POSH Act)} | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

04 Oct 2025
7 min

In Summary

सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम के तहत कार्यस्थल माना जाता है, जो सभी क्षेत्रों पर लागू होता है, महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए समितियों और समय पर शिकायतों का अनिवार्य रूप से गठन करता है।

In Summary

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि राजनीतिक दलों को "कार्यस्थल" नहीं माना जा सकता है। इसलिए POSH अधिनियम के प्रावधान उन पर लागू नहीं होते हैं।

POSH अधिनियम 2013 के बारे में:

  • न्यायिक पृष्ठभूमि: यह अधिनियम 1997 के विशाखा निर्णय पर आधारित है।
  • विस्तार: यह कानून सभी प्रकार के कार्यस्थलों पर लागू होता है। इनमें शामिल हैं:
    • सरकारी और निजी क्षेत्र,
    • गैर-सरकारी संगठन (NGOs),
    • शैक्षणिक संस्थान,
    • अस्पताल और खेल परिसर, आदि।
    • इनमें घरेलू कामगार (डोमेस्टिक वर्कर्स) भी शामिल हैं।
  • आंतरिक शिकायत समिति (ICC): 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले हर कार्य-स्थल में इसका गठन अनिवार्य है।
    • इस समिति के कम-से-कम 50% सदस्य और अध्यक्ष महिला होनी चाहिए।
  • स्थानीय शिकायत समिति (LCC): इसका गठन प्रत्येक जिले में किया जाता है। यह 10 से कम कर्मचारियों वाले कार्यस्थलों से जुड़ी शिकायतों का निपटारा करती है। 
  • शिकायत दायर करना: घटना की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर आंतरिक शिकायत समिति या स्थानीय शिकायत समिति के पास शिकायत दर्ज करवाना अनिवार्य है, और 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी आवश्यक है।

हाल ही में प्रधान मंत्री ने ‘स्वस्थ नारी सशक्त परिवार’ अभियान की शुरुआत की।

‘स्वस्थ नारी सशक्त परिवार अभियान’ के बारे में

  • इस अभियान के तहत देशभर में एक लाख से अधिक स्वास्थ्य शिविर लगाए जाएंगे। इनमें महिलाओं में एनीमिया, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और कैंसर की जांच होगी। साथ ही, टीकाकरण और पोषण पर सलाह देकर मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने का प्रयास किया जाएगा।
  • शामिल मंत्रालय: यह अभियान केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल है।
  • तकनीक: सशक्त (SASHAKT) पोर्टल के जरिए इस दिशा में प्रगति पर नजर रखी जाएगी और रियल टाइम में जवाबदेही तय होगी।
  • समुदाय की भागीदारी: आंगनवाड़ी, निक्षय मित्र, निजी अस्पताल आदि भी इस अभियान में हिस्सा लेंगे।

यह रिपोर्ट संयुक्त रूप से UN वीमेन और UN-DESA (संयुक्त राष्ट्र-आर्थिक और सामाजिक कार्य विभाग) ने जारी की है। इसमें सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के मामले में वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता की स्थिति का विस्तृत परिदृश्य प्रस्तुत किया गया है।

जेंडर स्नैपशॉट, 2025 के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • गरीबी और खाद्य सुरक्षा: 37.6 करोड़ महिलाएं यानी विश्व की 9.2% महिलाएं चरम गरीबी में जीवन जी रही हैं। एनीमिया के प्रसार में 2030 तक 33% तक की वृद्धि का अनुमान है।
  • स्वास्थ्य: मातृ मृत्यु दर में 2000–23 के बीच 39% की कमी आई है। हालांकि, महिलाएं पुरुषों की तुलना में औसतन 3 वर्ष अधिक खराब सेहत के साथ जीवन बिताती हैं।
  • शिक्षा: नामांकन के मामले में लड़कियां लड़कों से आगे रहीं हैं। हालांकि, अफ्रीका और एशिया में माध्यमिक शिक्षा पूरी करने में वे पिछड़ जाती हैं। बहुत कम महिलाएं स्कूल में प्रधानाध्याक के पद पर पहुंच पाती हैं।
  • नेतृत्व और कार्य: संसद में महिलाओं की भागीदारी 27% है और 30% प्रबंधन पदों पर महिलाएं कार्यरत हैं।
  • लैंगिक हिंसा: 12.5% महिलाएं अपने नजदीकी साथी द्वारा हिंसा की शिकार होती हैं और 19% लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है।
  • डिजिटल डिवाइड: 65% महिलाएं इंटरनेट से जुड़ी हुई हैं, जबकि पुरुषों में यह औसत 70% है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऑटोमेशन की वजह से महिलाओं की नौकरियां अधिक खतरे में हैं।
  • जलवायु और संसाधन: जलवायु परिवर्तन की वजह से 15.8 करोड़ और अधिक महिलाएं गरीबी रेखा के नीचे जा सकती हैं। 89.6 करोड़ महिलाओं के पास खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन उपलब्ध नहीं है।
  • शांति और सुरक्षा: 2024 में 67.6 करोड़ महिलाएं प्राण-घातक संघर्ष वाले क्षेत्रों में रह रहीं थीं।
  • इंटरसेक्शनैलिटी: दिव्यांग महिलाओं को प्रजनन अधिकार, इंटरनेट से जुड़ने और राजनीतिक भागीदारी में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2024-25 रिपोर्ट जारी की
  • यह रिपोर्ट राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की सिफारिशों के अनुरूप है। साथ ही, इसमें पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर देश के सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों से व्यक्तिगत छात्रवार डेटा एकत्र किया गया है।

2024-25 के लिए प्रमुख निष्कर्ष

  • UDISE+ की शुरुआत के बाद पहली बार देशभर में शिक्षकों की कुल संख्या 2024-25 में 1 करोड़ से अधिक हो गई है। यह 2022-23 की तुलना में 6% की वृद्धि दर्शाता है।
  • छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) NEP द्वारा अनुशंसित 1:30 अनुपात से अधिक हो गया है।
    • वर्तमान PTR: फाउंडेशनल (10), प्रिपरेटरी (13), मिडिल (17) और सेकेंडरी स्तरों पर (21) है।
  • स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों की दर (Drop out rates): इसमें प्रिपरेटरी (2.3%), मिडिल (3.5%) और सेकेंडरी (8.2%) स्तरों पर गिरावट आई है।
  • सकल नामांकन अनुपात (GER): यह मिडिल स्तर पर 90.3% और सेकेंडरी स्तरों पर 68.5% तक सुधर गया है।
  • एकल शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या में लगभग 6 प्रतिशत की कमी आई है। इसी प्रकार, शून्य नामांकन वाले स्कूलों की संख्या में भी लगभग 38 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है। 

भारतीय स्कूली शिक्षा में व्यापक डेटा और रुझान (2022-23 से 2024-25)

श्रेणी 

        संकेतक 

2023-24

2024-25

अवसंरचना सुविधाएं 

 कंप्यूटर एक्सेस

57.2

64.7

 इंटरनेट

53.9

63.5

लड़कियों के लिए शौचालय

97.2

97.3

महिला प्रतिनिधित्व

 लड़कियों का नामांकन

48.1

48.3

महिला शिक्षक

53.3

54.2

हाल ही में, शिक्षा पर व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण (CMS) जारी किया गया, जो राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) के 80वें दौर का हिस्सा है।

  • इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा जारी किया गया है।
  • इसमें डेटा संग्रह के लिए कंप्यूटर-सहायता प्राप्त व्यक्तिगत साक्षात्कार (CAPI) पद्धति का उपयोग किया गया।
  • यह सर्वेक्षण अपने पिछले सर्वेक्षणों से अलग है (NSS द्वारा किया गया सबसे हालिया CMS सर्वेक्षण 75वां दौर (जुलाई 2017-जून 2018) था)।
    • कवरेज: पिछले सर्वेक्षण में सभी स्तरों की शिक्षा शामिल थी, जबकि यह सर्वेक्षण केवल स्कूली शिक्षा पर केंद्रित है।
    • आंगनवाड़ी केंद्र: इस सर्वेक्षण में आंगनवाड़ी केंद्रों को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जबकि 75वें दौर में 'अन्य अनौपचारिक' शिक्षा के रूप में गिना गया था।
    • निजी कोचिंग: 75वें दौर के विपरीत, इस CMS में स्कूली शिक्षा और निजी कोचिंग पर व्यय को अलग-अलग एकत्र और प्रस्तुत किया गया है।

सर्वेक्षण की मुख्य बिन्दुओं पर एक नजर 

  • सरकारी शिक्षा की भूमिका: कुल छात्र नामांकन में सरकारी स्कूलों का हिस्सेदारी 55.9% है।
    • कुल छात्र नामांकन में इनकी हिस्सेदारी शहरी क्षेत्रों (30.1%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (66%) में अधिक है।
    • निजी स्कूलों में नामांकन: देश भर में कुल नामांकन में निजी गैर-सहायता प्राप्त (मान्यता प्राप्त) स्कूलों की हिस्सेदारी 31.9% है।
  • निजी कोचिंग का प्रचलन: वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के दौरान लगभग एक तिहाई छात्र (27%) निजी कोचिंग ले रहे थे या ले चुके थे।
    • यह प्रवृत्ति ग्रामीण क्षेत्रों (25.5%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (30.7%) में अधिक सामान्य है।
    • शिक्षा के मुख्य स्रोत के रूप में पारिवारिक वित्तपोषण: लगभग 95.0% छात्र शिक्षा व्यय के वित्तपोषण के प्राथमिक स्रोत के रूप में परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर हैं।

हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा NIRF रैंकिंग 2025 जारी की गई।

NIRF रैंकिंग 2025 के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • समग्र श्रेणी में IIT मद्रास को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ।
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु ने विश्वविद्यालयों की श्रेणी में पहला स्थान प्राप्त किया।

NIRF के बारे में

  • शुरुआत: इसे केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा भारतीय शैक्षिक संस्थानों को रैंक देने के लिए 2015 में लॉन्च किया गया।
    • यह रैंकिंग विद्यार्थियों, अभिभावकों और नीति निर्माताओं के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन करने हेतु पारदर्शी और विश्वसनीय प्रणाली प्रदान करती है।
  • मूल्यांकन मापदंड: रैंकिंग के लिए अलग-अलग भारांश वाले निम्नलिखित 5 व्यापक श्रेणियों का उपयोग किया जाता है:
    • शिक्षण, लर्निंग और संसाधन (0.30)
    • अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (0.30)
    • स्नातक परिणाम (0.20)
    • आउटरीच और समावेशिता (0.10)
    • धारणा (0.10)

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं, 2023 रिपोर्ट’ जारी की।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर 

  • कुल दुर्घटनाएं और मौतें: 2023 में, 4,80,583 सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं। यह 2022 की तुलना में 4.2% की वृद्धि है।
    • 2023 के दौरान, कुल दुर्घटना पीड़ितों में 18-45 वर्ष की आयु के युवाओं का प्रतिशत 66.4% था। 
  • सर्वाधिक हिस्सेदारी: 2023 में तमिलनाडु में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गई। इसके बाद मध्य प्रदेश का स्थान रहा।
    • सड़क दुर्घटना के कारण सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में तथा इसके बाद तमिलनाडु में हुई।
  • दुर्घटना-प्रवण राजमार्ग: ऐसे राजमार्ग, जो कुल सड़क नेटवर्क का लगभग 5% हिस्सा हैं, उन पर कुल दुर्घटनाओं का 53% से अधिक दर्ज किया गया। इसके अलावा, कुल मौतों में से 59% इन्ही राजमार्गों पर हुई। 
  • सड़क उपयोगकर्ता श्रेणियां: दोपहिया वाहन चालकों की दुर्घटना में हुई मौतों में सबसे अधिक हिस्सेदारी (45%) थी, जिसके बाद पैदल चलने वाले लोग थे।

सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण:

  • मानवीय गलतियां: इनमें यातायात नियमों का उल्लंघन; वैध ड्राइविंग लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाना और सुरक्षा उपकरणों का उपयोग न करना शामिल है।
  • सड़क का परिवेश: इसमें किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र (जैसे आवासीय क्षेत्र) में होने वाली दुर्घटनाएं तथा सड़क की दशा, मौसम की स्थिति आदि से संबंधित दुर्घटनाएं शामिल हैं।
  • वाहनों की स्थिति: उदाहरण के लिए- वाहन की उपयोग अवधि और ओवरलोडिंग।
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