सुर्ख़ियों में क्यों?
चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) 2025 के दौरान भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति ने अलग से मुलाकात की।
अन्य संबंधित तथ्य
- यह 2018 के बाद भारतीय प्रधानमंत्री पहली चीन यात्रा थी।
- हाल ही में, दोनों देशों के बीच विशेष प्रतिनिधि (Special Representatives: SRs) की 24वें दौर की वार्ता का भी आयोजन किया गया था।
- इस वार्ता की सह अध्यक्षता चीन के विदेश मंत्री और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार द्वारा की गयी थी।
- भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा और SRs वार्ता से भारत-चीन के बीच पुनः एक नयी भागीदारी का संकेत मिलता है।
भारत-चीन संबंधों के समक्ष चुनौतियाँ
- अनसुलझी सीमाएँ: 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control: LAC) पर दोनों देशों के बीच आपसी असहमति के कारण कई बार संघर्ष हुए हैं।
- हाल के संघर्षों में 2017 का डोकलाम विवाद और 2020 का गलवान घाटी संघर्ष शामिल हैं।
- व्यापार असंतुलन: 2024-25 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 99 अरब डॉलर हो गया, जबकि यह 2023-24 में 85 अरब डॉलर था।
- अगस्त 2025 में, चीन अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
- चीन के नेतृत्व वाले त्रिपक्षीय गुट: हाल ही में, चीन ने भारत के निकटतम पड़ोसी क्षेत्रों में दो त्रिपक्षीय पहलें शुरू की हैं—एक बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ और दूसरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
- चीन की आक्रामकता: विशेष रूप से दक्षिण एशिया में "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" जैसी रणनीतियों के जरिए मालदीव और श्रीलंका में चीन की मौजूदगी के चलते दक्षिण चीन सागर में उसकी बढ़ती पहुँच आदि भारत के लिए असुरक्षा का कारण बन सकती हैं।
- इस बीच, भारत क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे मंचों के जरिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है, जिसे चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के रूप में देखा जा रहा है।
- जल-शक्ति: जैसे कि ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग जांगबो) पर बांध का निर्माण करके चीन जल को भारत के खिलाफ एक भू-रणनीतिक हथियार के रूप में उपयोग कर सकता है।
भारत और चीन के बीच विशेष प्रतिनिधि (SRs) की 24वें दौर की वार्ता माध्यम से नवीनतम जुड़ाव:
- सीमा प्रबंधन पर सहमति:
- 2005 के राजनीतिक मानकों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर समझौते (Agreement on Political Parameters and Guiding Principles) पर आधारित एक निष्पक्ष, तर्कसंगत और आपसी सहमति द्वारा सीमा संबंधी विवाद के समाधान के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा।
- परामर्श एवं समन्वय के लिए कार्य तंत्र के तहत एक विशेषज्ञ समूह और कार्य समूह स्थापित करने का निर्णय लिया गया।
- तनाव को प्रबंधित करने और तनाव कम करने पर चर्चा शुरू करने के लिए मौजूदा राजनयिक एवं सैन्य-स्तरीय तंत्रों का उपयोग करने पर सहमति बनी है।
- आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करना: दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने के लिए राजनीतिक एवं रणनीतिक दिशा से आगे बढ़ने की आवश्यकता पर बल दिया है।
- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), शिपकी ला दर्रा (हिमाचल प्रदेश) और नाथुला दर्रा (सिक्किम) के जरिए व्यापार फिर से शुरू किया जाएगा।
- वार्ता तंत्र: दोनों पक्षों ने निलंबित द्विपक्षीय वार्ताओं को फिर से शुरू करने का फैसला किया है। इसमें 2026 में पीपल-टू-पीपल एक्सचेंजेस पर उच्च-स्तरीय तंत्र भी शामिल है।
- दोनों देशों ने यह दोहराया कि वे विकास हेतु साझेदार हैं न कि प्रतिद्वंद्वी।
- 75 वर्षों के संबंध: भारत और चीन 2025 में अपने कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर समर्पित कार्यक्रम आयोजित करेंगे और ड्रैगन-एलिफेंट संबंधों को पुनर्जीवित करने करेंगे।
- सामरिक स्वायत्तता की दिशा में प्रयास: दोनों देश सुनिश्चित करेंगे कि उनके संबंधों को तीसरे देशों के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाए।
- अन्य:
- जल्द-से-जल्द सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने पर सहमति बनी है।
- भारत की कैलाश मानसरोवर यात्रा का दायरा 2026 से बढ़ाया जाएगा।
- दोनों पक्षों ने आपात स्थितियों के दौरान हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने पर सहमति व्यक्त की है।
भारत के लिए इस नवीनतम सहभागिता का महत्व
- व्यापार: उदाहरण के लिए, चीन भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए सक्रिय औषधीय अवयवों (Active Pharmaceutical Ingredients - APIs) का एक प्रमुख स्रोत है।
- निवेश: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में भारत के विनिर्माण क्षेत्रक को बढ़ावा देने के लिए "चीन से निवेश आकर्षित करने" की सिफारिश की गई है।
- हाल ही में नीति आयोग ने चीन की कंपनियों पर अतिरिक्त संवीक्षा को आसान बनाने का प्रस्ताव किया है।
- भारत के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों की उपलब्धता: चीन विश्व के दुर्लभ भू-अयस्क का लगभग 70% उत्पादन करता है और 90% का प्रसंस्करण करता है।
- भारत अपनी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के लिए जरुरी सौर मॉड्यूल और सेल्स के लिए भी चीन पर निर्भर है।
- वैश्विक प्रभाव: एशिया के प्रमुख शक्तियों के रूप में, भारत-चीन के मध्य स्थिर संबंध उनको वैश्विक शासन व्यवस्था में रचनात्मक भूमिकाएं निभाने में सक्षम बनाते हैं और ब्रिक्स एवं SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों में संयुक्त प्रयासों के माध्यम से अपने प्रभाव को बढ़ाते हैं।
- भारत और चीन के बीच सहयोग अंतर्राष्ट्रीय मामलों में पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला करने में मदद कर सकता है और WTO, IMF, और UN जैसी संस्थाओं में सुधार के लिए दबाव बना सकता है।
- वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करना: भारत-चीन के मध्य स्थिर संबंध जलवायु परिवर्तन, लोक स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग को सुगम बनाते हैं।
- क्षेत्रीय शांति और स्थिरता: यह विवादित सीमा पर संघर्ष के जोखिम को कम करता है और दक्षिण एशिया और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान करता है।
- भारत-रूस-चीन त्रिकोण (ट्रायंगल) को सशक्त बनाना: इससे निवेश के अवसरों का विस्तार हो सकता है और US द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और शुल्कों का सामना करने के तरीकों का पता लगा सकते हैं।
निष्कर्ष
ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों के माध्यम से वार्ता को मजबूत करके तथा व्यापार, जल प्रबंधन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सहयोग के जरिये धीरे-धीरे विश्वास को पुनः स्थापित किया जा सकता है। इस प्रयास में, दोनों देशों को तीन आपसी सिद्धांतों जैसे कि - आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हितों का पालन करना चाहिए।