सुर्खियों में क्यों?
भारत का पहला राष्ट्रीय बायो-फाउंड्री नेटवर्क 25 अगस्त, 2025 को लॉन्च किया गया। भारत की बायोई3 नीति (BioE3 Policy) जारी होने की पहली वर्षगांठ के अवसर पर इसे लॉन्च किया गया।
राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क के बारे में:

- उद्देश्य: प्रयोग में सफल (प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट) परियोजनाओं को व्यवहारिक प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करने के लिए सहयोग प्रदान करना।
- प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (PoC): यह वास्तव में किसी नई सोच या विचार की संभावना या व्यावहारिकता को परखने का एक तरीका है। यह बाजार में उसकी मांग या उत्पादन पद्धतियों का आकलन नहीं है।
- घटक: यह नेटवर्क बायोई3 नीति का एक घटक है और इसे बायोएनबलर्स (Bioenablers) की श्रेणी में रखा गया है।
- बायोफाउंड्री: बायोफाउंड्री एक ऑटोमेटेड फैसिलिटी है जो डीएनए संश्लेषण, जीन एडिटिंग और व्यापक बायो-मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रियाओं को एकीकृत कर इंजीनियर्ड जीवों को तेजी से डिजाइन, निर्मित और अनुकूलित करती है।
- मुख्य कार्य:
- अलग-अलग थीमेटिक क्षेत्रों में अनुसंधान गतिविधियों का विस्तार करना। उदाहरण के लिए:
- अंतर्राष्ट्रीय आनुवंशिक अभियांत्रिकी और जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (International Centre for Genetic Engineering and Biotechnology: ICGEB) प्रथम और द्वितीय पीढ़ी के जैव-ईंधनों के लिए सूक्ष्मजीवीय प्रजातियों की इंजीनियरिंग पर कार्य कर रहा है।
- आईआईटी-मद्रास पशु-रहित हायल्यूरोनिक अम्ल के उत्पादन को प्रोत्साहित कर रहा है।
- यह नेटवर्क स्टार्टअप, लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs), उद्योगों तथा शैक्षणिक संस्थानों के लिए साझा आधारभूत संरचना प्रदान करता है।
- इसके साथ ही यह प्रशिक्षण और इंटर्नशिप के माध्यम से बायो-मैन्युफैक्चरिंग के लिए आवश्यक अलग-अलग संकायों और बहु-कार्यात्मक तकनीकी कौशल के साथ मानव संसाधन का विकास भी करता है।
- अलग-अलग थीमेटिक क्षेत्रों में अनुसंधान गतिविधियों का विस्तार करना। उदाहरण के लिए:
बायोई3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति के बारे में:
- यह जैव प्रौद्योगिकी पर भारत की पहली नीति है। इसे 2024 में मंजूरी दी गई थी।
- मंत्रालय/विभाग: केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT)।
- उद्देश्य:
- बायो-मैन्युफैक्चरिंग को बेहतर दक्षता, संधारणीयता और गुणवत्ता के साथ क्रांतिकारी रूप से विकसित करना और उच्च-मूल्य वाले जैव-आधारित उत्पादों के विकास और उत्पादन को तेज करना।
- बायो-मैन्युफैक्चरिंग में परिशुद्ध जैव चिकित्सकीय, कार्बन कैप्चर और उपयोग, फंक्शनल फूड्स और स्मार्ट प्रोटीन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- लक्ष्य: 2030 तक भारत की जैव-अर्थव्यवस्था को दोगुना कर 300 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाना।
- बायो-मैन्युफैक्चरिंग को बेहतर दक्षता, संधारणीयता और गुणवत्ता के साथ क्रांतिकारी रूप से विकसित करना और उच्च-मूल्य वाले जैव-आधारित उत्पादों के विकास और उत्पादन को तेज करना।
- BioE3 नीति की प्रमुख विशेषताएं:
- नवाचार-आधारित अनुसंधान एवं विकास और उद्यमिता: यह नीति अनुसंधान और स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए मजबूत समर्थन प्रदान करती है।
- प्रौद्योगिकी विकास और व्यावसायीकरण: यह नीति बायो-मैन्युफैक्चरिंग, बायो-एआई हब और बायोफाउंड्री के माध्यम से प्रगति को गति देती है।
- हरित विकास मॉडल: रिजेनरेटिव और सर्कुलर बायो-इकॉनमी की पद्धतियों को प्राथमिकता देती है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) आधारित कार्यान्वयन: यह नीति उद्योग की भागीदारी बढ़ाने, कुशल कार्यबल का विस्तार करने और रोजगार सृजन के लिए पीपीपी (PPP) मॉडल का उपयोग करती है।
BioE3 नीति की प्रमुख उपलब्धियां:
- अवसंरचना: 21 अत्याधुनिक बायोएनेबलर सुविधाओं की स्थापना और BRIC-राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव-विनिर्माण संस्थान (BRIC-NABI) की स्थापना की गई।
- मंत्रालयों के बीच सहयोग: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और इसरो (ISRO) के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लाइफ-साइंसेज से संबंधित प्रयोग किए गए।
- केंद्र-राज्य साझेदारी: असम सरकार के साथ साझेदारी की शुरुआत की गई, ताकि क्षेत्रीय जैव विविधता का लाभ उठाकर बायो-मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सके।
- मानव संसाधन विकास: BioE3 यूथ चैलेंज की शुरुआत की गई, जो स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और उद्योग के लिए जमीनी स्तर के नवाचारों को प्रोत्साहित करता है।
- जीन-एडिटेड फसलें: भारत पोषण सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन के लिए जीन-एडिटेड चावल की किस्में विकसित करने वाला पहला देश बना।
बायोई3 (BioE3) नीति की चुनौतियां:
- कीर्तिमानों का अभाव: इसकी वजह से नीति जारी होने के बाद हुई प्रगति नहीं दिखती है।
- मानव संसाधन की कमी: विशेष रूप से सूक्ष्मजीवीय प्रजातियों की इंजीनियरिंग और बायो-प्रोसेसिंग में विशेषज्ञता की भारी कमी है। इसके लिए अधिक व्यावहारिक प्रशिक्षण और इंटर-डिसिप्लिनरी कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
- विस्तार संबंधी बाधाएं: वित्तपोषण की कमी और बाधाओं के कारण खोज या नए विचारों के व्यावसायिक उपयोग में चुनौतियां उत्पन्न होती हैं।
- व्यावसायीकरण में बाधाएं: गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज GMP) यूनिट्स के लिए उच्च पूंजी निवेश की आवश्यकता, कच्चे माल की स्थानीय स्तर पर कम आपूर्ति, महंगी आयातित सामग्री पर निर्भरता और असंबद्ध लॉजिस्टिक्स वास्तव में इस क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को बाधित करते हैं।
- बायो-सेफ्टी और लोगों का विश्वास: जीन-एडिटेड फसलों को लेकर बायो-सेफ्टी से जुड़ी चिंताओं पर चल रही बहस और लोगों का विश्वास जीतने के लिए सक्रिय और जिम्मेदार वैज्ञानिक संचार की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
बायोई3 (BioE3) नीति और राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क के साथ भारत एक संधारणीय, आत्मनिर्भर और हरित जैव-अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में बड़ा कदम उठा रहा है। 2030 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर और 2050 तक लगभग 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जैव-अर्थव्यवस्था का महत्वाकांक्षी लक्ष्य लेकर, भारत वैश्विक जैव-अर्थव्यवस्था की शक्ति के रूप में उभरने की ओर अग्रसर है। इस रूप में वह राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।