बैंकिंग अधिनियम का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्रक का विनियमन और पर्यवेक्षण करना है। इससे बैंकिंग प्रणाली की कार्यप्रणाली में शुचिता और बैंकों में धन जमा करने वालों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- भारत की स्वतंत्रता से पहले, बैंकों का विनियमन कंपनी अधिनियम, 1850 और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत किया जाता था।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की उपलब्धियां
- समावेशन और आउटरीच: इस अधिनियम के तहत 'प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक को ऋण' (Priority Sector Lending) जैसी पहलों की शुरुआत की गई। इससे कृषि क्षेत्रक और लघु उद्योगों को बैंकों से ऋण मिलना आसान हुआ।
- बैंकों का सुचारू संचालन: इस अधिनियम ने अलग-अलग आर्थिक चक्रों या संकटों के दौरान बैंकिंग क्षेत्रक का सुचारू संचालन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उदाहरण के लिए- इस अधिनियम के तहत पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) और तरलता कवरेज अनुपात जैसे विनियामक कदम उठाए गए। इससे भारतीय बैंकों को 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभावों का सामना करने में मदद मिली।
- बैंकों पर विश्वास बढ़ना: विनियामकीय निगरानी और बैंकों में जमा धन सुरक्षित होने की वजह से बैंकों पर जनता का विश्वास बढ़ा है।
- त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action) फ्रेमवर्क: RBI ने बैंकिंग अधिनियम के तहत यह कदम उठाया था। यह बैंकों के वित्तीय संकट की शीघ्र पहचान करने में मदद करती है। फिर बैंकों के लिए सुधारात्मक उपायों को लागू करना अनिवार्य किया जाता है।
- समय के साथ नई पहलों को अपनाना: डिजिटल बैंकिंग, वित्तीय समावेशन और वैश्विक वित्तीय मानकों को अपनाने जैसी नई चुनौतियों का सामना करने के लिए बैंकिंग व्यवस्था में सुधार किए गए हैं।
- उदाहरण के लिए- 2014 में पेमेंट बैंक और 2016 में स्मॉल फाइनेंस बैंक की शुरुआत की गई थी।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के मुख्य प्रावधान
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