इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ पद से हटाने संबंधी प्रस्ताव राज्य सभा में प्रस्तुत किया गया।
- पद से हटाने संबंधी प्रक्रिया का उद्देश्य जवाबदेही सुनिश्चित करना और न्यायिक सत्यनिष्ठा को बनाए रखना है।
- आजादी के बाद से छह बार न्यायाधीशों के खिलाफ पद से हटाने संबंधी प्रस्ताव लाए गए थे, लेकिन कोई भी पारित नहीं हुआ था।
न्यायाधीशों को पद से हटाने से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 124(4): यह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 218: इसमें हाई कोर्ट के न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की समान प्रक्रिया और आधार पर पद से हटाने का प्रावधान किया गया है।
- आधार: साबित कदाचार और अक्षमता के आधार पर। हालांकि, इसे संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है।
- प्रक्रिया: यह न्यायाधीश जांच अधिनियम (1968) द्वारा विनियमित होती है।
पद से हटाने संबंधी प्रक्रिया के चरण
- आरंभ: प्रस्ताव पर कम-से-कम 100 लोक सभा सदस्यों या 50 राज्य सभा सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
- प्रस्ताव संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी को सौंपा जाता है।
- जांच: यह आगे निम्नलिखित तीन सदस्यीय समिति को भेजा जाता है:
- भारत का मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट का अन्य न्यायाधीश,
- हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और
- एक प्रतिष्ठित न्यायविद।
- समिति आरोपों की जांच करती है और अपने निष्कर्षों एवं टिप्पणियों के साथ रिपोर्ट अध्यक्ष/ सभापति को सौंपती है। इसके बाद अध्यक्ष/ सभापति रिपोर्ट को लोक सभा/ राज्य सभा के समक्ष रखते हैं।
- यदि समिति न्यायाधीश को दोषी पाती है, तो उसकी रिपोर्ट को उस सदन द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, जहां इसे पेश किया गया था।
- संसदीय अनुमोदन: इसके लिए प्रस्ताव को विशेष बहुमत से संसद के दोनों सदनों से पास होना अनिवार्य है।
- विशेष बहुमत: उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत और कुल सदस्य संख्या का बहुमत।
- राष्ट्रपति द्वारा कार्रवाई: यदि दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है, तो प्रस्ताव अंतिम अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।