यह रिपोर्ट ‘भारत के लिए जिला-स्तरीय जलवायु जोखिम आकलन: IPCC फ्रेमवर्क का उपयोग करके बाढ़ और सूखे के जोखिमों का मानचित्रण’ शीर्षक से जारी की गई है।
- यह रिपोर्ट भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी ने तैयार की है। इसे IIT मंडी और विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नीति अध्ययन केंद्र (CSTEP), बेंगलुरु के सहयोग से तैयार किया गया है।
- इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के फ्रेमवर्क का उपयोग किया गया है। साथ ही, यह बाढ़ और सूखे से उत्पन्न दोहरे खतरों की पहचान करती है तथा सुभेद्य आबादी पर इनके असमान प्रभावों को उजागर भी करती है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- बाढ़ जोखिम का आकलन: भारत के 51 जिले बाढ़ संबंधी जोखिम की 'अत्यंत उच्च (Very High)' श्रेणी में आते हैं तथा अन्य 118 जिले 'उच्च (High)' श्रेणी में आते हैं।
- ये जिले मुख्यतः असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, ओडिशा और जम्मू एवं कश्मीर में हैं।
- सूखा जोखिम आकलन: 91 जिले सूखे से संबंधित जोखिम की 'अत्यंत उच्च' श्रेणी में आते हैं तथा अन्य 188 जिले 'उच्च' श्रेणी में आते हैं।
- ये जिले मुख्यतः बिहार, असम, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र में हैं।
- बाढ़ और सूखे का दोहरा जोखिम: 11 जिले बाढ़ और सूखे दोनों के मामले में “अत्यंत उच्च” जोखिम की श्रेणी में हैं।
आगे की राह
- बहु-स्तरीय और क्षेत्रीय दृष्टिकोण: अलग-अलग क्षेत्रकों और विविध स्तरों पर जोखिमों का आकलन करना चाहिए।
- जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के अंतर्गत जोखिम आकलन: भविष्य के जलवायु परिदृश्यों को जोखिम आकलन में शामिल किया जाना चाहिए।
- क्षमता निर्माण: राज्य और जिला प्रशासकों के कौशल में निरंतर सुधार करना चाहिए।
- उभरते नए जोखिम: इसमें भूस्खलन, हीट स्ट्रेस और मिश्रित घटनाओं जैसे नए खतरों को शामिल करने के लिए जलवायु कार्रवाई फ्रेमवर्क्स को अपडेट करना चाहिए।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार सूखे और बाढ़ की परिभाषा
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