इस रिपोर्ट का शीर्षक '400 मिलियन ड्रीम्स' है। इसमें 2011 की जनगणना के बाद से भारत में प्रवासन के बदलते पैटर्न पर चर्चा की गई है।
- आंतरिक/ घरेलू प्रवास से तात्पर्य किसी देश के भीतर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को लोगों की आवाजाही से है।
- प्रतिकर्ष कारक (Push factors): रोजगार के अवसरों की कमी, प्राकृतिक आपदा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी, आदि।
- अपकर्ष कारक (Pull factors): आर्थिक अवसर, उच्च जीवन स्तर, शांति और स्थिरता, आदि।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर के नजर
- घरेलू प्रवासियों की संख्या में कमी: घरेलू प्रवासियों की संख्या में लगभग 12 प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है। यह संख्या 2011 की 45.57 करोड़ की तुलना में 2023 में घटकर 40.20 करोड़ रह गई थी। प्रवासन दर लगभग 38% से घटकर लगभग 29% रह गई है।
- प्रवासन गतिशीलता:
- रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू प्रवासन में लोग अधिकतर कम दूरी तक ही प्रवास करते हैं। दूरी श्रम गतिशीलता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
- प्रवासन मुख्य रूप से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों के आसपास के क्षेत्रों से होता है
- प्रमुख प्रवास मार्ग: उत्तर प्रदेश-दिल्ली, गुजरात-महाराष्ट्र, तेलंगाना-आंध्र प्रदेश, बिहार-दिल्ली (राज्य स्तर)।
- प्रवासी हिस्सेदारी में वृद्धि: पश्चिम बंगाल, राजस्थान और कर्नाटक में आने वाले प्रवासियों के प्रतिशत में वृद्धि देखी गई है।
- प्रवासी हिस्सेदारी में कमी: महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में आने वाले कुल प्रवासियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है।
प्रवासी संख्या में गिरावट के लिए जिम्मेदार कारण
- मूल स्थान पर बेहतर अवसंरचनाओं (जैसे सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक परिवहन आदि) का निर्माण, सामाजिक सुरक्षा जाल इत्यादि।
- स्थानीयकृत आर्थिक संवृद्धि के चलते ग्रामीण क्षेत्रों के नजदीक ही रोजगार सृजन हो रहा है।
भारत में घरेलू प्रवासियों के कल्याण के लिए उठाए गए कदम
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