सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे की सुनवाई में कई खामियों को देखते हुए मृत्युदंड को रद्द कर दिया। कोर्ट ने पाया कि आरोपी को उचित कानूनी प्रतिनिधित्व नहीं मिला, जिससे उसे निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार नहीं मिल सका।
- सुप्रीम कोर्ट ने अनोखीलाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2019) मामले का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि कानूनी सहायता केवल औपचारिकता नहीं होनी चाहिए बल्कि प्रभावी और सार्थक होनी चाहिए, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी दी गई है।
निष्पक्ष सुनवाई क्या है?
- निष्पक्ष सुनवाई एक मौलिक मानवाधिकार है, जो यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रणाली के अंतर्गत व्यक्तियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाए।
- निष्पक्ष सुनवाई मानवाधिकारों के गैर-कानूनी हनन से सुरक्षा प्रदान करती है तथा सभी व्यक्तियों की मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत
- निर्दोषता की धारणा (Presumption of Innocence), उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नरेश वाद:
- प्रत्येक अभियुक्त को दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष माना जाता है, तथा अपराध साबित करने का भार अभियोजन पक्ष (Prosecution) पर होता है।
- स्वतंत्र न्यायपालिका (श्याम सिंह बनाम राजस्थान राज्य; अनुच्छेद 50):
- न्यायाधीशों को कार्यपालिका के प्रभाव से मुक्त रखा जाना चाहिए, ताकि न्यायिक निष्पक्षता बनी रहे।
- त्वरित सुनवाई का अधिकार (हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य; अनुच्छेद 21):
- मुकदमे की कार्यवाही में अनावश्यक देरी होना जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- एक ही अपराध के लिए दो बार सजा के खिलाफ संरक्षण {(अनुच्छेद 20(2)}:
- किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता या दंडित नहीं किया जा सकता। इससे कानूनी निश्चितता सुनिश्चित होती है और बार-बार अभियोजित होने के खिलाफ संरक्षण मिलता है।
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
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