विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि गिरफ्तारी के दौरान कानूनी आधार बताए बिना किसी अभियुक्त को गिरफ्तार करना पुलिस के लिए गैर-कानूनी है।
- हालांकि, फैसले में स्पष्ट किया गया है कि गिरफ्तारी भले ही दोषपूर्ण हो सकती है, लेकिन जांच, आरोप-पत्र और मुकदमा वैध रहेंगे।
निर्णय के मुख्य बिंदु
- मूल अधिकारों का उल्लंघन: गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी न देना संविधान के अनुच्छेद 21 और 22(1) के तहत अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 21: किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसकी प्राण व दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 22(1): गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को तुरंत इसका कारण बताया जाना चाहिए। साथ ही, उसे उसकी पसंद के कानूनी वकील से परामर्श लेने तथा बचाव कराने का अधिकार है।
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50A: इसके तहत, कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति के मित्रों, रिश्तेदारों या नामित व्यक्तियों को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने के महत्त्व पर भी जोर दिया। यह धारा गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी आदि के बारे में नामित व्यक्ति को जानकारी देना अनिवार्य करती है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 47 में भी समान प्रावधान किया गया है।
- जमानत के लिए निहितार्थ: जब अनुच्छेद 22(1) का पालन न हो तो न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दे। यह जमानत देने का आधार हो सकता है।
- गिरफ्तारी के आधारों के बारे में गिरफ्तार व्यक्ति को उस भाषा में प्रभावी ढंग से जानकारी दी जाए, जिसे वह समझता है।
- सबूत का दायित्व: अनुच्छेद 22(1) के तहत जिम्मेदारियों को साबित करने का भार जांच अधिकारी/ एजेंसी पर होगा।
गिरफ्तारी का आधार बताए जाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अन्य निर्णय
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