संसदीय समिति ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग नियम, 2023 के तहत पराली जलाने पर किसानों पर लगाए जाने वाले पर्यावरणीय मुआवजे (EC) की जांच की है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग नियमों को 2024 में संशोधित किया गया था।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरणीय मुआवजा एक नीतिगत उपकरण है, जो प्रदूषक द्वारा भुगतान सिद्धांत पर काम करता है।
संसदीय समिति द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशें
- एकीकृत राष्ट्रीय नीति: कृषि अवशेषों को जैव ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तित करने के लिए एक एकीकृत नीति तैयार की जानी चाहिए।
- इसमें फसल अवशेष प्रबंधन आदि के लिए बाह्य-स्थाने लागत (Ex-situ costs) का समाधान होना चाहिए।
- साथ ही, इसमें कृषि अवशेषों को बायो इथेनॉल, कंप्रेस्ड बायोगैस और बायोमास पेलेट्स आदि में परिवर्तित करने हेतु नवीन तकनीकों को अपनाने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- आर्थिक प्रोत्साहन: पराली के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने की आवश्यकता है।
- प्रशासन और निवारण तंत्र को मजबूत करना: गलत या विवादित चालान से संबंधित किसानों की शिकायतों का तुरंत समाधान करने के लिए एक प्राधिकरण की नियुक्ति की जानी चाहिए।
- अन्य:
- राज्य सरकारों को किसानों को पूसा 44 की जगह कम अवधि में तैयार हो जाने वाली धान-किस्मों की खेती के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ध्यातव्य है कि पूसा-44 को तैयार होने में 155-160 दिन लगते हैं, जबकि PR-126 जैसी किस्मों को तैयार होने में महज 123-125 दिन लगते हैं।
- फसल विविधीकरण योजना जैसी योजनाओं के तहत चल रहे फसल विविधीकरण प्रोत्साहनों के प्रभावों का समय-समय पर आकलन किया जाना चाहिए।
- फसल के रकबे (Acreage) की रियल-टाइम मैपिंग तथा फसल की परिपक्वता और मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने वाली प्रणाली की स्थापना की जानी चाहिए।
- फसल अवशेष एकत्रित करने के लिए विभिन्न जिलों में अंतरिम भंडारण सुविधाएं स्थापित करने की आवश्यकता है।
- संधारणीय कृषि को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरणीय मुआवजा फंड्स का उपयोग करने की आवश्यकता है।