"जल अंतराल (Water gaps)" से तात्पर्य स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी-तंत्र में पर्याप्त जल प्रवाह को बनाए रखते हुए किसी निर्दिष्ट क्षेत्र में उपलब्ध नवीकरणीय जल की मात्रा और उपभोग किए जा रहे जल की मात्रा के बीच के अंतर से है।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- विश्व के संबंध में:
- सभी महाद्वीपों में प्रतिवर्ष लगभग 458 बिलियन क्यूबिक मीटर का जल अंतराल पहले से मौजूद है।
- 1.5°C तापमान वृद्धि पर दुनिया को और भी अधिक कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, जबकि 3°C तापमान वृद्धि पर और भी अधिक गंभीर परिणाम देखने को मिलेगा।
- हालांकि, ग्लोबल वार्मिंग से वर्षण (Precipitation) के पैटर्न में बदलाव देखने को मिलेगा, जिससे कुछ देशों जैसे नाइजीरिया में जल अंतराल कम हो जाएगा।
- भारत के संबंध में:
- संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन जैसे देशों के साथ भारत सबसे बड़े जल अंतराल का सामना करने वाले देशों में से एक है। इसके अलावा, यह अनुमान लगाया गया है कि तापमान में वृद्धि के साथ जल अंतराल में और भी तेज वृद्धि होगी।
- गंगा-ब्रह्मपुत्र, गोदावरी जैसे नदी बेसिनों में जल अंतराल सबसे अधिक बढ़ने की संभावना है।
भारत में जल संसाधनों की स्थिति
- भारत में दुनिया की आबादी का 18% हिस्सा निवास करता है, लेकिन देश के पास वैश्विक जल संसाधनों का केवल 4% हिस्सा ही मौजूद है। देश में 600 मिलियन से अधिक लोग पहले से ही जल की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं।
- नीति आयोग के अनुसार 2030 तक भारत में जल की मांग आपूर्ति से दोगुनी हो जाएगी। इससे जल की गंभीर कमी होगी तथा सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 6% हानि होने की संभावना है।
जल संकट को बढ़ाने वाले कारक
- अत्यधिक जनसंख्या, भूजल का अत्यधिक दोहन, जल संदूषण और प्रदूषण, जल का खराब प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन आदि।
जल संरक्षण के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय
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