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सुप्रीम कोर्ट ने दल-बदल याचिकाओं पर अध्यक्ष की लंबे समय तक निष्क्रियता की निंदा की | Current Affairs | Vision IAS
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सुप्रीम कोर्ट ने दल-बदल याचिकाओं पर अध्यक्ष की लंबे समय तक निष्क्रियता की निंदा की

Posted 03 Apr 2025

10 min read

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष द्वारा दल-बदल याचिकाओं के संबंध में निर्णय देने में देरी से संविधान की दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) के सार्थक उद्देश्य विफल हो सकते हैं।

  • सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कानूनी प्रश्न: क्या कोर्ट अर्ध-न्यायिक अधिकरण के रूप में कार्य करने वाले अध्यक्ष को दल-बदल विरोधी याचिकाओं पर एक तय समय-सीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है?

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

  • अध्यक्ष द्वारा निर्णय न देने के मामले में कोर्ट की शक्ति: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अध्यक्ष दल-बदल याचिकाओं पर "अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं करता है" तो कोर्ट उस पर निर्णय देने में सक्षम है।
  • उचित समय-सीमा निर्धारित करने का कोर्ट का अधिकार: यद्यपि कोर्ट दल-बदल याचिकाओं के परिणाम निर्धारित नहीं कर सकती, फिर भी कोर्ट अध्यक्ष को उचित अवधि के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकती है।
    • उदाहरण के लिएकेशम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधान सभा के माननीय अध्यक्ष और अन्य वाद (2020)।
  • यदि अध्यक्ष कार्यवाही करने में विफल रहता है, तो सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

दल-बदल विरोधी कानून के कार्यान्वयन में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई अन्य टिप्पणियां

  • अध्यक्ष के निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा: यदि अध्यक्ष कार्यवाही में देरी करता है, तो कोर्ट  को हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए (किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हु वाद 1992)।
  • अध्यक्ष की निष्पक्षता: अध्यक्ष को एक राजनीतिक व्यक्ति की बजाय एक तटस्थ निर्णायक के रूप में कार्य करना चाहिए (रवि एस. नाइक बनाम भारत संघ वाद 1994)।
  • दल-बदल संबंधी मामलों के लिए स्वतंत्र अधिकरण: इस संबंध में अध्यक्ष द्वारा शक्तियों को एक स्वतंत्र अधिकरण को हस्तांतरित करने पर विचार किया जाना चाहिए (कर्नाटक विधायकों की अयोग्यता से संबंधित वाद 2020)।
  • Tags :
  • दल-बदल विरोधी कानून
  • किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हु वाद
  • रवि एस. नाइक बनाम भारत संघ वाद
  • कर्नाटक विधायकों की अयोग्यता से संबंधित वाद
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