सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष द्वारा दल-बदल याचिकाओं के संबंध में निर्णय देने में देरी से संविधान की दसवीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) के सार्थक उद्देश्य विफल हो सकते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कानूनी प्रश्न: क्या कोर्ट अर्ध-न्यायिक अधिकरण के रूप में कार्य करने वाले अध्यक्ष को दल-बदल विरोधी याचिकाओं पर एक तय समय-सीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

- अध्यक्ष द्वारा निर्णय न देने के मामले में कोर्ट की शक्ति: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अध्यक्ष दल-बदल याचिकाओं पर "अपनी स्थिति को स्पष्ट नहीं करता है" तो कोर्ट उस पर निर्णय देने में सक्षम है।
- उचित समय-सीमा निर्धारित करने का कोर्ट का अधिकार: यद्यपि कोर्ट दल-बदल याचिकाओं के परिणाम निर्धारित नहीं कर सकती, फिर भी कोर्ट अध्यक्ष को उचित अवधि के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दे सकती है।
- उदाहरण के लिए- केशम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधान सभा के माननीय अध्यक्ष और अन्य वाद (2020)।
- यदि अध्यक्ष कार्यवाही करने में विफल रहता है, तो सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
दल-बदल विरोधी कानून के कार्यान्वयन में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई अन्य टिप्पणियां
- अध्यक्ष के निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा: यदि अध्यक्ष कार्यवाही में देरी करता है, तो कोर्ट को हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए (किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हु वाद 1992)।
- अध्यक्ष की निष्पक्षता: अध्यक्ष को एक राजनीतिक व्यक्ति की बजाय एक तटस्थ निर्णायक के रूप में कार्य करना चाहिए (रवि एस. नाइक बनाम भारत संघ वाद 1994)।
- दल-बदल संबंधी मामलों के लिए स्वतंत्र अधिकरण: इस संबंध में अध्यक्ष द्वारा शक्तियों को एक स्वतंत्र अधिकरण को हस्तांतरित करने पर विचार किया जाना चाहिए (कर्नाटक विधायकों की अयोग्यता से संबंधित वाद 2020)।