'भारत सरकार द्वारा मुकदमेबाजी के कुशल और प्रभावी प्रबंधन के लिए निर्देश' सुशासन, लोक कल्याण एवं समय पर न्याय प्रदान करने की दिशा में एक एकीकृत दृष्टिकोण है।
- उद्देश्य: यह निर्देश "मानक परिचालन प्रक्रिया" (SOP) की तरह कार्य करेगा, ताकि सरकार से जुड़े मुकदमों का सही से प्रबंधन हो सके।
- लागू होना: केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय/ विभाग, उनके संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालय, स्वायत्त निकाय तथा CPSEs के मध्यस्थता मामलों पर भी।
- राज्य सरकारें भी इस निर्देश को अपनाने पर विचार कर सकती हैं।
सरकार से जुड़े मुकदमों के प्रबंधन में चुनौतियां

- मुकदमों की अधिकता: उदाहरण के लिए- केंद्र सरकार अलग-अलग न्यायालयों में लंबित लगभग 700,000 मामलों में एक पक्षकार है।
- क्षमता की कमी: संसाधनों की कमी के कारण मंत्रालयों की संबंधित मुकदमों का प्रबंधन करने की क्षमता सीमित है। उदाहरण के लिए- अधिकांश मंत्रालयों में विधि प्रकोष्ठ नहीं हैं।
- क़ानूनी प्रावधान की संकीर्ण व्याख्या: कानून की संकीर्ण व्याख्या शिकायतों को मुकदमों में तब्दील करने हेतु प्राथमिक कारक के रूप में कार्य करती है।
- प्रक्रियागत अनिवार्यताओं की पूर्ति न करना: उदाहरण के लिए- फॉर्म, शपथ-पत्र आदि का अनुचित या अपूर्ण प्रस्तुतीकरण।
मुकदमों के प्रबंधन के लिए निर्देश
- क्षमता को मजबूत करना: प्रत्येक मंत्रालय में कानूनी विशेषज्ञता वाले नोडल अधिकारी की नियुक्ति करनी चाहिए।
- इसके अलावा, मुकदमेबाजी से संबंधित पाठ्यक्रम को iGOT कर्मयोगी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जाएगा।
- शिकायत निवारण तंत्र: मंत्रालयों द्वारा तिमाही आधार पर शिकायत निवारण की समीक्षा करनी चाहिए तथा एकत्रित आंकड़ों के माध्यम से रुझानों का विश्लेषण करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए- डाक विभाग सर्किल स्तर पर हर छह माह में “स्टॉफ अदालत” आयोजित करता है।
- सरकारी मध्यस्थता पोर्टल की स्थापना: उदाहरण के लिए- नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड की तरह एक पोर्टल बनाया जाना चाहिए, ताकि मध्यस्थता से जुड़े डेटा को एकत्र किया जा सके।