यह रिपोर्ट न्याय प्रणाली के चार स्तंभों में संरचनात्मक अक्षमताओं को उजागर करती है, जो न्याय तक पहुंच में असमानताओं को और बढ़ा सकती हैं।
रिपोर्ट में रेखांकित किए गए प्रमुख संरचनात्मक मुद्दे
- पुलिस
- स्टाफ की कमी: देश भर में पुलिस बल में 23% तथा फोरेंसिक स्टाफ में 50% से अधिक पद रिक्त हैं।
- महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व: राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ पदों पर केवल 8% महिला अधिकारी हैं तथा किसी भी राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश पुलिस बल में महिलाओं के लिए आरक्षित कोटा पूरा नहीं है।
- केंद्र सरकार ने 2009 में पुलिस बल में 33% महिलाओं के साथ राष्ट्रीय मानक का सुझाव दिया था।
- न्यायपालिका
- न्यायाधीश-जनसंख्या का निम्न अनुपात: प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 15 न्यायाधीश हैं, जबकि 1987 के विधि आयोग की सिफारिश के अनुसार यह अनुपात 50 न्यायाधीश प्रति 10 लाख जनसंख्या होना चाहिए।
- विविधता का अभाव:
- महिलाएं: निचली अदालतों में महिला न्यायाधीशों की संख्या 38% है, जबकि हाई कोर्ट्स में यह संख्या केवल 14% है।
- अन्य वंचित वर्ग: केवल कर्नाटक ही न्यायपालिका में SCs, STs और OBCs कोटा पूरा करता है।
- जेलों की स्थिति
- स्टाफ की कमी: राष्ट्रीय स्तर पर जेल स्टाफ के 30% पद रिक्त हैं।
- क्षमता से अधिक कैदी: जेलों में कैदियों की संख्या जेल की क्षमता से बढ़कर 131% हो गई है, जिनमें विचाराधीन कैदियों की हिस्सेदारी 76% है।
- कानूनी सहायता:
- घटती स्वयंसेवी भागीदारी: पैरालीगल स्वयंसेवकों की संख्या में 38% की कमी आई है।
भारत की न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए ठोस प्रोत्साहन की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए- राज्यों को न्यायिक रिक्तियों, पुलिस प्रशिक्षण या जेल सुधार कार्यक्रमों में सुधार दिखाने के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए, ताकि देश भर में दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।