सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में राज्य विधान-मंडल से पारित विधेयकों पर राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत सहमति देने या उसे रोके रखने से संबंधित शक्तियों को स्पष्ट किया।
- शीर्ष न्यायालय ने पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए अनुच्छेद 142 के अंतर्गत दिए गए उसके विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुए यह आदेश पारित किया।
तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल वाद पर निर्णय के मुख्य बिंदु

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल को "पूर्ण वीटो" या "पॉकेट वीटो" की शक्ति प्राप्त नहीं है। अनुच्छेद 200 में प्रयुक्त "यथाशीघ्र" शब्द राज्यपाल द्वारा शीघ्रता से निर्णय लेने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- पूर्ण वीटो: यह विधायिका से पारित विधेयक को मंजूरी देने से रोकता है।
- पॉकेट वीटो: इसके तहत विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती और उसे अनिश्चितकाल तक लंबित रखा जाता है।
- विधान-मंडल द्वारा फिर से पारित विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता: यदि पुनर्विचार के लिए भेजे गए विधेयक को विधान-मंडल बिना बदलाव के फिर से पारित करता है और उसमें कोई मूलभूत परिवर्तन न हो तो राज्यपाल को उस विधेयक पर अनिवार्य रूप से सहमति देनी होगी।
- राज्य सरकार की सलाह पर कार्य करना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना ही होगा; उसके पास स्वतंत्र विवेकाधिकार नहीं है।
- अपवाद: हालांकि, यदि किसी पारित विधेयक से हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रभावित होती हैं तो राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 200 के अंतर्गत विधेयक पर राज्यपाल द्वारा यथाशीघ्र कार्रवाई के लिए स्पष्ट समय सीमाएं निर्धारित की हैं।
- यदि राज्यपाल दी गई समय-सीमाओं का पालन नहीं करता है, तो उसकी निष्क्रियता की न्यायालय द्वारा समीक्षा की जाएगी।
संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत विधेयकों पर राज्यपाल के सहमति की प्रक्रिया
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