इस पेपर में पिछले छह दशकों में भारत की कृषि-खाद्य प्रणाली में हुए बदलावों पर प्रकाश डाला गया है।
भारत की कृषि-खाद्य प्रणाली में संरचनात्मक बदलाव
- खाद्य-अभाव से खाद्य-अधिशेष राष्ट्र तक का सफर: यह हरित क्रांति, इनपुट सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण संभव हुआ है।
- अर्थव्यवस्था में योगदान: राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान 43% से घटकर 18% हो गया है और कार्यबल में हिस्सेदारी धीरे-धीरे 74% से घटकर 46% हो गई है।
- खेतों का घटता आकार: सीमांत खेतों (≤1 हेक्टेयर) का अनुपात 51% से बढ़कर 68% हो गया है, तथा खेतों का औसत आकार 2.28 हेक्टेयर से घटकर 1.08 हेक्टेयर हो गया है।
- विविधीकरण: कृषि सकल मूल्य वर्धित (GVA) में पशुपालन और मत्स्य पालन की हिस्सेदारी 2022-23 में बढ़कर क्रमशः 31% और 7% हो गई थी।
कृषि-खाद्य प्रणाली संबंधी बदलावों के समक्ष चुनौतियां
- कृषि भूमि में गिरावट: इसके लिए जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण जिम्मेदार हैं।
- उर्वरकों का असंतुलित उपयोग: यह स्थिति सब्सिडी की अलग-अलग दरों, कम पोषक तत्व उपयोग दक्षता और क्षेत्रीय असमानताओं के कारण है।
- अकुशल जल उपयोग: इसमें भूजल का अत्यधिक दोहन और जल के उपयोग से संबंधित कम दक्षता शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के कारण कृषि उत्पादकता वृद्धि में लगभग 25% की कमी आई है।
- अन्य: इसमें अविकसित बाजार, ऋण और मूल्य श्रृंखलाएं, अनाज-केंद्रित नीतियां आदि शामिल हैं।
कृषि-खाद्य प्रणाली में संधारणीय बदलावों हेतु सिफारिशें
- जल प्रबंधन: वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना चाहिए।
- सुधार: बिजली हेतु सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना चाहिए, नैनो उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए तथा फसल चक्र, अंतर-फसली पद्धति जैसे संधारणीय तरीकों को अपनाना चाहिए।
- अन्य: कृषि अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए; कृषि बाजार से संबंधित अवसंरचना और मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करना चाहिए; कृषि मूल्य नीति में सुधार आदि किया जाना चाहिए।