एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवीय बर्फ काफी तेजी से पिघल रहे हैं। इसके कारण पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुवों (Geographical Poles) की स्थिति में बदलाव आ सकता है।
- भौगोलिक ध्रुव पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के दोनों सिरों पर स्थित हैं। पृथ्वी का घूर्णन अक्ष एक काल्पनिक रेखा है, जिसके चारों ओर पृथ्वी घूमती है। यह काल्पनिक रेखा पृथ्वी की सतह से दो स्थानों पर मिलती है। इन बिंदुओं को भौगोलिक ध्रुव या उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के नाम से जाना जाता है।
- भूपर्पटी के संबंध में पृथ्वी के घूर्णन ध्रुव की गति को ध्रुवीय गति (Polar motion) कहा जाता है।
ध्रुव क्यों खिसक रहे हैं?
- पृथ्वी का घूर्णन पूरी तरह से स्थिर नहीं है। पृथ्वी पर मौजूद द्रव्यमान के वितरण में परिवर्तन के कारण इसमें उतार-चढ़ाव होता है।
- पृथ्वी के घूर्णन में उतार-चढ़ाव निम्नलिखित कारणों से हो सकता है:
- वायुमंडलीय दबाव या समुद्री धाराओं में उतार-चढ़ाव,
- कोर-मेंटल डायनेमिक,
- ग्लेशियल कैप यानी बर्फ की टोपियों और ग्लेशियरों का पिघलना,
- एक अध्ययन के अनुसार, बर्फ पिघलने और महासागरीय द्रव्यमान में परिवर्तन के कारण वर्ष 2100 तक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव 12 से 27 मीटर तक खिसक सकते हैं।
- इसका प्रमुख कारण ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ का पिघलना है। इनके साथ-साथ छोटे ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना भी एक प्रमुख कारण है।
ध्रुवों के खिसकने के संभावित प्रभाव
- नेविगेशन में जटिलता: ध्रुवों के खिसकने से उपग्रह आधारित नेविगेशन और अंतरिक्ष दूरबीन प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि ये सटीक स्थिति के लिए पृथ्वी के घूर्णन पर निर्भर होते हैं।
- दिन की अवधि में वृद्धि: बर्फ के पिघलने के कारण पृथ्वी के ध्रुवों से द्रव्यमान भूमध्य रेखा की ओर स्थानांतरित हो रहा है। इसके कारण पृथ्वी थोड़ी चपटी हो जाती है।
- द्रव्यमान के इस पुनर्वितरण से पृथ्वी के घूर्णन की गति धीमी हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दिनों की लंबाई बढ़ जाती है।
- वर्ष 2000 के बाद से, दिनों की अवधि में वृद्धि की दर तेज हो गई है। वर्तमान में, हर 100 वर्षों में दिन लगभग 1.33 मिलीसेकंड लंबे हो रहे हैं, जो पिछली शताब्दी की तुलना में अधिक तीव्र गति है।
- द्रव्यमान के इस पुनर्वितरण से पृथ्वी के घूर्णन की गति धीमी हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप दिनों की लंबाई बढ़ जाती है।