ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) एक ऐसा तंत्र है, जिसका उद्देश्य स्वैच्छिक वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है। इसके परिणामस्वरूप, ग्रीन क्रेडिट्स प्रदान किए जाते हैं। साथ ही, इसके तहत निम्नीकृत भूमि की सूची भी तैयार की जाती है, जिसका उपयोग वनारोपण कार्यक्रमों के लिए किया जा सकता है।
- इसके महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, GCP को कानूनी जांच और पर्यावरणीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) से संबंधित आलोचना और विवाद

- कानूनी आधार का अभाव: इसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत बनाया गया है। इस अधिनियम में प्रतिपूरक वनारोपण के लिए व्यापार योग्य ग्रीन क्रेडिट्स के संबंध में कोई कानूनी फ्रेमवर्क प्रदान नहीं किया गया है।
- पर्यावरण संबंधी आलोचना
- वनों की कटाई को बढ़ावा: कंपनियां वृक्षारोपण की बजाये ग्रीन क्रेडिट्स खरीद सकती हैं। इससे पर्यावरण संरक्षण पर असर पड़ सकता है।
- निम्नीकृत भूमि से संबंधित जोखिम: GCP खुले जंगलों, झाड़ियों और बंजर भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देता है, जबकि ये पहले से ही विशिष्ट पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करते हैं।
- वन क्षेत्र में कोई वास्तविक वृद्धि न होना: प्रतिपूरक वनारोपण के तहत गैर-वन्य भूमि को वनों में रूपांतरित करना अनिवार्य होता है। GCP के तहत मौजूदा निम्नीकृत वन भूमि का उपयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है कि वन क्षेत्र में कोई निवल वृद्धि नहीं होती है।
- यह वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 2023 के विपरीत है, जो भूमि के बदले भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण को अनिवार्य बनाता है।
- मूल्यांकन और दीर्घकालिक संधारणीयता: GCP पद्धति में सफल वृक्षारोपण विशेष रूप से वृक्षों के बचे रहने के मूल्यांकन के लिए स्पष्ट मानदंडों का अभाव है। इसके कारण असफल वृक्षारोपण के लिए भी ग्रीन क्रेडिट्स अर्जित करने का अवसर मिल जाता है।