महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री (WCD) ने राज्य सभा में जानकारी दी कि कुल 62,592 बच्चे बाल देखभाल संस्थानों (CCIs) में रह रहे हैं। इन संस्थानों में ओपन शेल्टर, स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसी, ऑब्जर्वेशन होम आदि शामिल हैं।
भारत में बालक गोद लेने की प्रक्रिया
- नोडल मंत्रालय: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
- प्राथमिक कानून: भारत में गोद लेने की प्रक्रिया मुख्य रूप से किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा संचालित है। इस कानून का उद्देश्य जिन बच्चों को देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है उन बच्चों की सुरक्षा, सम्मान एवं कल्याण सुनिश्चित करना है।
- केंद्रीय नोडल एजेंसी: किशोर न्याय अधिनियम के तहत स्थापित केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) प्रमुख नोडल एजेंसी है। यह घरेलू और अंतर्देशीय गोद लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। CARA हेग कन्वेंशन के दिशा-निर्देशों को लागू करने का भी काम करता है।
- बालकों के संरक्षण और अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण के संबंध में सहयोग पर हेग कन्वेंशन (1993): यह बाल तस्करी पर रोक लगाता है तथा नैतिक, कानूनी एवं पारदर्शी अंतर्देशीय दत्तक ग्रहण को आसान बनाता है।
- राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की जिम्मेदारी: राज्य और केंद्र शासित प्रदेश निम्नलिखित संस्थाओं के माध्यम से किशोर न्याय अधिनियम को लागू करते हैं:
- राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसियां (SARAs);
- स्थानीय बाल कल्याण समितियां; तथा
- जिला बाल संरक्षण इकाइयां (DCPUs)।
भारत में बालक गोद लेने में चुनौतियां:
- प्रशासनिक देरी: भारत में गोद लेने की औसत प्रतीक्षा अवधि एक वर्ष से अधिक है।
- आयु/ क्षमता पूर्वाग्रह: बड़े बच्चों और दिव्यांग बच्चों को गोद लेने की दर कम है।
- पूर्वाग्रह और अत्यधिक सामाजिक हेय भावना: अधिकांश भारतीय माता-पिता दत्तक ग्रहण (गोद लेने) से झिझकते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनका बच्चा "उनके जीन, रक्त और वंश परंपरा" से संबंधित हो।
भारत में गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए उठाए गए कदम:
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