इन सैन्य उपग्रहों को खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) कार्यों के लिए लॉन्च किया जाएगा।
- इससे अंतरिक्ष-आधारित उपग्रहों, प्रौद्योगिकियों आदि के माध्यम से भारत की सैन्य क्षमताओं को मजबूती मिलेगी।
- इससे पहले भारत ने GSAT-7 (रुक्मिणी), GSAT-7A (एंग्री बर्ड) और RISAT सीरीज (रेडार इमेजिंग सैटेलाइट्स) जैसे उपग्रह लॉन्च किए हैं, ताकि सशस्त्र बलों की क्षमताओं को बढ़ाया जा सके।

सैन्य उपग्रहों से जुड़े मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- ISRO और निजी क्षेत्रक मिलकर इन सैन्य उपग्रहों का विकास करेंगे।
- इन उपग्रहों को सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR), एडवांस्ड सेंसर और इमेजिंग सिस्टम से लैस किया जाएगा।
- इन उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO), मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO) और संभवतः जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (GEO) जैसी अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया जाएगा। इससे व्यापक कवरेज प्राप्त होगी। ऐसे में, किसी एक कक्षा के उपग्रह में व्यवधान उत्पन्न होने पर अन्य कक्षाओं में स्थित उपग्रहों से डेटा प्राप्त होता रहेगा।
नए सैन्य-अंतरिक्ष डॉक्ट्रिन के बारे में
- यह सिद्धांत सशस्त्र बलों को खतरों की निगरानी, शत्रु की गतिविधियों पर नज़र रखने और रियल टाइम में सीमाओं से बाहर की खुफिया जानकारी जुटाने में मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा।
- यह एंटी-सैटेलाइट हथियारों, अंतरिक्ष मलबे और अंतरिक्ष में इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर जैसे बढ़ते खतरों से निपटने पर केंद्रित होगा।
- इससे पहले, 2019 में भारत को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में किसी सैटेलाइट को नष्ट करने की क्षमता प्राप्त हुई थी। इससे भारत को अंतरिक्ष में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने की भी क्षमता प्राप्त हुई।
- भारत इस तरह की क्षमता वाला चौथा देश बन गया है। अन्य तीन देश हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन।
- इससे पहले, 2019 में भारत को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में किसी सैटेलाइट को नष्ट करने की क्षमता प्राप्त हुई थी। इससे भारत को अंतरिक्ष में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने की भी क्षमता प्राप्त हुई।