यह जानकारी IIT दिल्ली और रुड़की द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई है। इसके तहत देश भर में स्थित 170 से अधिक निगरानी स्टेशनों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर पाया गया है कि पिछले 40 वर्षों (1970-2010) में भारत में नदिय बाढ़ की स्थिति में बदलाव आया है।
इस अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- बाढ़ की तीव्रता में गिरावट: लगभग 74% निगरानी स्टेशनों से बाढ़ की तीव्रता में कमी के रुझान प्राप्त हुए हैं, जबकि 26% से वृद्धि के रुझान प्राप्त हुए हैं। बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में बाढ़ की तीव्रता में कमी देखी गई है।
- क्षेत्र विशेष रुझान:-
- पश्चिमी एवं मध्य गंगा बेसिन: मानसून के दौरान बाढ़ में प्रति दशक 17% की गिरावट देखने को मिली है। ऐसा वर्षा और मिट्टी की नमी में कमी के के कारण हुआ है।
- नर्मदा बेसिन: बाढ़ की व्यापकता में लगातार गिरावट हुई है। ऐसा मुख्यतः बांध निर्माण के कारण हुआ है।
- मराठवाड़ा क्षेत्र: मानसून के दौरान नदी के जल प्रवाह में 8% और मानसून-पूर्व मौसम के दौरान 31% की कमी हुई है।
- क्षेत्र विशेष रुझान:-
- मानसून-पूर्व बाढ़ की तीव्रता में वृद्धि: मालाबार तट (केरल व तमिलनाडु) क्षेत्र में मानसून-पूर्व बाढ़ की तीव्रता में प्रति दशक 8% की वृद्धि देखने को मिली है। ऐसा मानसून-पूर्व वर्षा में वृद्धि के कारण हुआ है। इससे चलियार, पेरियार, भरतपुझा आदि नदियां प्रभावित होती हैं।
- बाढ़ आने के समय में बदलाव: इसमें ऊपरी गंगा क्षेत्र में बाढ़ आने में देरी, मध्य भारत में बाढ़ का समय से पहले आना और दक्षिण भारत में आमतौर पर बाद में बाढ़ आने जैसी घटनाएं देखने को मिली हैं।
इसके प्रभाव
- जलाशय एवं जल सुरक्षा पर प्रभाव: बाढ़ में कमी से जलाशय के जल स्तर में कमी आ सकती है। इससे जल आपूर्ति, सिंचाई और जल विद्युत पर प्रभाव पड़ सकता है।
- बाढ़ प्रबंधन प्रणाली में आवश्यक बदलाव करना: इसमें अग्रिम चेतावनी, ग्रीन बफर्स, स्मार्ट नियोजन और मजबूत अवसंरचना पर अधिक ध्यान देना चाहिए।