रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के पास विश्व में तीसरा सबसे बड़ा REE भंडार है, लेकिन इसका वैश्विक REE खनन में योगदान 1% से भी कम है।
- वहीं दूसरी ओर, चीन के पास विश्व का कुल 49% REE भंडार है और REE खनन (उत्पादन) में उसकी 69% हिस्सेदारी है। यही नहीं, REE रिफाइनिंग में उसका 90% योगदान है।
भारत में REE प्राप्ति क्षेत्र

- भारत के REE भंडार मुख्य रूप से मोनाजाइट रेत में पाए जाते हैं, जिनमें थोरियम भी मौजूद होता है।
- इंडियन मिनरल्स ईयरबुक 2023 के अनुसार तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, ओडिशा जैसे तटीय राज्यों में REE के सबसे अधिक भंडार मौजूद हैं।
भारत REE खनन और रिफाइनिंग में पिछड़ क्यों रहा है?
- खनन की जटिल प्रक्रिया: REE आम तौर पर रेडियोएक्टिविटी से जुड़े होते हैं, जिससे इनका खनन लंबी, जटिल और महंगी प्रक्रिया बन जाती है।
- अधूरी औद्योगिक मूल्य श्रृंखला: भारत के पास REE का खनन करने, उन्हें अन्य तत्वों से अलग करने और ऑक्साइड के रूप में रिफाइन करने की सुविधाएं मौजूद है। साथ ही, वह धातुओं की प्राप्ति भी कर सकता है।
- हालांकि, भारत के पास मिश्रधातु और मैग्नेट जैसे मध्यवर्ती उत्पादों के निर्माण की सुविधा नहीं है।
- अन्य कारण:
- भारत के पास मुख्यतः हल्के दुर्लभ भू तत्व (Light REE) हैं, जबकि भारी दुर्लभ भू तत्व (Heavy REE) खनन योग्य मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone - CRZ) मानदंडों के कारण भी इनके खनन पर प्रतिबंध है।
- मिनी रत्न कंपनी 'इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL)’ एकमात्र भारतीय संस्था है, जो मोनाजाइट से दुर्लभ भू यौगिकों का प्रसंस्करण करती है।