हाल ही में, उपराष्ट्रपति ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत का एक वैश्विक शक्ति के रूप में उदय तभी सार्थक होगा जब उसके बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रभाव का भी समान रूप से उत्थान हो।
भारतीय पारंपरिक ज्ञान परंपरा (IKS) क्या है?
- यह भारत की हज़ारों वर्षों पुरानी बौद्धिक परंपरा को समाहित करती है। इसमें कला, संगीत, नृत्य, नाटक, गणित, खगोलशास्त्र, विज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि जैसे क्षेत्र शामिल हैं। यह ज्ञान प्राचीन भाषाओं जैसे संस्कृत, प्राकृत, तमिल, पाली आदि में निहित है।
- उदाहरण: आयुर्वेद, योग, सूर्य सिद्धांत, नाट्यशास्त्र, संख्या प्रणाली (जिसमें ‘शून्य’ शामिल है) आदि।
- वैश्विक शिक्षा केंद्र: तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, ओदंतपुरी आदि प्राचीन भारत में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय थे। यहां कोरिया, चीन, तिब्बत और फारस आदि से छात्र ज्ञान-प्राप्ति के लिए आते थे।
भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता क्यों है?
- मानसिक उपनिवेशवाद से मुक्ति: औपनिवेशिक काल की उस सोच को समाप्त करना आवश्यक है, जिसने स्वदेशी ज्ञान परंपराओं को कमतर आँका और पश्चिमी ज्ञानमीमांसाओं को सार्वभौमिक सत्य के रूप में स्थापित किया।
- ज्ञान परंपरा को हाशिए पर जाने से रोकना: यूरोपीय सांस्कृतिक दृष्टिकोण का वर्चस्व भारतीय पारंपरिक ज्ञान परंपरा को मुख्यधारा की शिक्षा व्यवस्था में शामिल होने से रोकता है। उदाहरण के लिए- अमेरिका में हल्दी के औषधीय गुणों के लिए पेटेंट आवेदन का प्रयास।
- सीमित भागीदारी: युवाओं को भारतीय पारंपरिक ज्ञान परंपरा के अध्ययन के लिए हतोत्साहित किया जाता है, क्योंकि इसे अक्सर गलत समझा जाता है, गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है या शिक्षा की मुख्यधारा से बाहर रखा जाता है।
- सॉफ्ट पावर: भारतीय पारंपरिक ज्ञान परंपरा सांस्कृतिक कूटनीति (जैसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस), अकादमिक प्रभाव (जैसे नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार), और पर्यटन (जैसे रानी की वाव जैसे विश्व धरोहर स्मारकों की स्वदेशी स्थापत्य कला) को बढ़ावा दे सकती है।
भारत की पारंपरिक ज्ञान परंपरा (IKS) को संरक्षित करने के लिए विविध उपाय किए गए हैं:
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