वित्त मंत्री ने ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) की स्थापना को बढ़ावा देने और अधिक फॉर्च्यून 500 कंपनियों को भारत में आकर्षित करने के लिए उद्योग एवं सरकार से मिलकर काम करने का आग्रह किया है।
वर्ष 2024 में, भारत में हर सप्ताह औसतन 1 नया GCC स्थापित हुआ था।
GCC क्या है
- GCC को ग्लोबल इन-हाउस सेंटर या कैप्टिव (GIC) भी कहा जाता है।
- ये वैश्विक कंपनियों द्वारा बनाए गए विदेशी केंद्र होते हैं, जो अपनी मूल कंपनी को विविध प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे- IT सेवाएं, अनुसंधान और विकास (R&D) सेवाएं, ग्राहक सहायता इत्यादि।
- ये केंद्र इन कंपनियों के आंतरिक ढांचे का हिस्सा होते हैं।
- भारत में GCC वृद्धि के लिए जिम्मेदार कारक:
- कम लागत में सेवाएं मिलना;
- डिजिटल और नीतिगत तैयारी (स्मार्ट सिटीज़, डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम);
- कुशल और सस्ता कार्यबल (अंग्रेजी जानने वाले युवा);
- बड़ा उपभोक्ता बाजार आदि।
भारत में GCC के विकास में चुनौतियां
- टियर-II और टियर-III शहरों में कुशल कार्यबल की सीमित उपलब्धता;
- अवसंरचना की कमी (भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी);
- जटिल विनियामक संरचनाएं;
- साइबर सुरक्षा खतरे आदि।
आवश्यक रणनीतिक हस्तक्षेप
- नई तकनीकों को अपनाना: जैसे- AI, ऑटोमेशन, क्लाउड कंप्यूटिंग आदि।
- भू-राजनीतिक जटिलताओं से निपटना: जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्यों और परिणामी विनियामक अनिश्चितता से निपटने के लिए अति सक्रिय गवर्नेंस मॉडल अपनाना चाहिए।
- कार्यबल रणनीतियों को पुनर्परिभाषित करना: इसमें प्रतिभा का कौशल विकास करना, नए कौशल सिखाना और हाइब्रिड वर्क मॉडल अपनाना आदि शामिल हैं।
- संधारणीयता: GCC को पर्यावरणीय, सामाजिक और गवर्नेंस (ESG) लक्ष्यों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
भारत में GCCs की वर्तमान स्थिति
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