सुप्रीम कोर्ट ने विशेषकर सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने के दौरान नागरिकों से आत्म-संयम और नियंत्रण बरतने पर जोर दिया है।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
- अपनी राय रखना एक अलग बात है, लेकिन उसे किसी खास तरीके से कहना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है। इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी और कानून प्रवर्तन पर बोझ बढ़ता है।
- नागरिकों को सोशल मीडिया का उपयोग करते समय स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए, लेकिन स्वयं पर नियंत्रण न रख पाने की स्थिति में राज्य को ऐसी दुर्भावना वाली प्रवृत्तियों को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसे राज्य के खिलाफ (वर्टिकल एप्लिकेशन) तथा अन्य नागरिकों के खिलाफ (होरिजेंटल एप्लिकेशन) भी लागू किया जा सकता है।
- कौशल किशोर केस (2023) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौलिक अधिकारों के होरिजेंटल एप्लिकेशन को मान्यता दी गई थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सोशल मीडिया का प्रभाव
- सकारात्मक प्रभाव
- अपनी बात को रखना: यह हाशिए पर रहने वाले और कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों को अपनी बात कहने हेतु एक मंच प्रदान करता है।
- सहभागितापूर्ण लोकतंत्र को मजबूत करना: यह नागरिकों को राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में भाग लेने की सुविधा प्रदान करता है।
- जवाबदेही और पारदर्शिता: नागरिक और मीडिया इसका उपयोग सरकारी व्यवस्था को जवाबदेह ठहराने एवं लोक महत्त्व के मुद्दों को उठाने के लिए करते हैं।
- नकारात्मक प्रभाव
- गलत सूचना और फेक न्यूज: इससे दहशत, दंगे, मानहानि हो सकती है।
- अभद्र भाषा और दुर्व्यवहार: ऑनलाइन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार व ट्रोलिंग व्यक्तियों को सामाजिक एवं मानसिक रूप से प्रभावित करते हैं।
- एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह: इसमें एल्गोरिदम द्वारा विविध विचारों को कम दिखाना और कुछ खास प्रकार के कंटेंट को ज्यादा बढ़ावा देना शामिल है।