यह रिपोर्ट भारत पर अमेरिकी प्रशुल्क के प्रभाव का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। साथ ही, भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए सुझाव भी देती है।
भारत पर वर्तमान अमेरिकी प्रशुल्क व्यवस्था का प्रभाव
- बाजार हिस्सेदारी में वृद्धि: भारत उन उत्पादों और सेवाओं के निर्यात में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की अच्छी स्थिति में है, जिनका वह वर्तमान में अमेरिका को निर्यात करता है, तथा यह वृद्धि उसके कुल निर्यात मूल्य के 61% के बराबर होगी।
- प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: भारत को प्रमुख क्षेत्रकों, जैसे- परमाणु रिएक्टर, लोहा एवं इस्पात, वस्त्र, विद्युत उपकरण, वाहन आदि में चीन, मैक्सिको और कनाडा पर प्रशुल्क संबंधी बढ़त मिलेगी।
- हानि: औसत प्रशुल्क नुकसान केवल 1% है, जहां भारत को कुछ अधिक प्रशुल्क का सामना करना पड़ेगा।
- अवसर: उच्च मूल्य वाले क्षेत्रकों (जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, परमाणु रिएक्टर आदि) और श्रम-प्रधान वस्तुओं (जैसे- परिधान, वस्त्र) में।
अपनाये जाने वाली नीतिगत उपाय
- पण्य (Merchandise) व्यापार को बढ़ावा देने के लिए
- निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाना: श्रम-प्रधान क्षेत्रकों को उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना में शामिल करना, क्रॉस-सब्सिडी घटाकर विद्युत प्रशुल्क को तार्किक बनाना आदि।
- व्यवसाय करने में सुगमता और बाजार तक पहुंच: अधिकृत आर्थिक परिचालक (AEO) कार्यक्रम को बेहतर बनाना, निर्यात संवर्धन मिशन के तहत लक्षित योजनाएं शुरू करना आदि।
- व्यापार साझेदारों और समझौतों में विविधता लाना: बड़ी आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनना तथा भारत-यूरोपीय संघ (EU) मुक्त व्यापार समझौते (FTA) और जन विश्वास 2.0 जैसी पहलों को आगे बढ़ाना।
- सेवा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए
- भारत-यूनाइटेड किंगडम समझौते के मॉडल पर आधारित सेवा-केंद्रित FTA पर वार्ता करना।
- व्यावसायिक अवसरों का विस्तार करने के लिए पारस्परिक मान्यता समझौतों (MRAs) को व्यापक बनाना।
- लाइसेंसिंग और विनियामक अनुपालन को सरल बनाना, जैसे सेवा निर्यात में असंगत डेटा अनुपालन एवं बौद्धिक संपदा से जुड़े मुद्दों को हल करना।
- कौशल उन्नयन और तकनीक (जैसे- डिजिटल हेल्थ, फिनटेक, क्लाउड कंप्यूटिंग और एडु-टेक) में निवेश करके नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ावा देना।