सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक मामले से संबंधित अपील में निर्णय सुनाते समय DNA साक्ष्यों के प्रबंधन को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनसे प्रक्रियाओं में एकरूपता और संवेदनशीलता बनी रहेगी तथा साक्ष्यों की शुचिता सुनिश्चित की जा सकेगी।
भारत में DNA साक्ष्यों के प्रबंधन से जुड़ी समस्याएं
- संग्रहण और संरक्षण: जांच करने वाले कार्मिक के पास पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव, साक्ष्य की सुरक्षित अभिरक्षा की श्रृंखला (chain of custody) का टूट जाना आदि।
- सीमित फोरेंसिक क्षमता: DNA प्रयोगशालाओं की कमी और क्षेत्रीय असमानता, स्टाफ की कमी के कारण जांच में देरी आदि।
- एक समान मानक संचालन प्रक्रिया (SOPs) का अभाव: क्योंकि ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची–II (राज्य सूची) में शामिल विषय हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य दिशा-निर्देशों पर एक नजर
- DNA नमूनों का संग्रहण: एकत्र किए गए DNA नमूनों का उचित दस्तावेजीकरण किया जाए। इसमें संबंधित धारा और कानून का उल्लेख, पुलिस स्टेशन का विवरण आदि शामिल होने चाहिए।
- परिवहन: जांच अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि नमूने एकत्र किए जाने के समय से अधिकतम 48 घंटे के भीतर फॉरेंसिक प्रयोगशाला तक पहुंच जाएं।
- साक्ष्य अभिरक्षा श्रृंखला रजिस्टर (Chain of Custody Register): इसे नमूने के संग्रहण से लेकर अंतिम परिणाम (आरोपी की सजा या बरी होने) तक बनाए रखा जाए, ताकि साक्ष्य की हर एक मूवमेंट का रिकॉर्ड रखा जा सके।
भारतीय न्यायालयों में DNA साक्ष्य की स्वीकार्यता
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