वर्तमान में 1 डॉलर का मूल्य 90 रुपये से अधिक हो गया है, जो भारतीय रुपये की कमजोरी को दर्शाता है। मजबूत घरेलू समष्टि आर्थिक (macroeconomic) संकेतकों के बावजूद, 2025 में INR का 5% से अधिक का अवमूल्यन हो गया। इन सकारात्मक संकेतों में 8.2% GDP वृद्धि, लगभग 1% मुद्रास्फीति दर, कच्चे तेल की कम कीमतें आदि शामिल हैं।
- रुपये का अवमूल्यन (Depreciation): यह तब होता है, जब खुले बाजार में इसका मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम हो जाता है।
अवमूल्यन के प्राथमिक कारक
- भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार समझौते पर अनिश्चितता: भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी प्रशुल्कों में 50% तक की वृद्धि निर्यात प्रतिस्पर्धा को चुनौती देती है। साथ ही, निवेशकों के विश्वास को कमजोर करती है।
- पूंजी का बहिर्वाह: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने महत्वपूर्ण धनराशि निकाली है। FPIs भारत को ऐसा बाजार मानते हैं, जहां से आसानी से और शीघ्र धन निकाला जा सकता है। जब उन्हें लगता है कि किसी अन्य विकासशील देश का बाजार भारत से तेज गति से बढ़ने वाला है, तो वे वहां निवेश करने लगते हैं।
- बढ़ता व्यापार घाटा: यह भारत में स्वर्ण, इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी की उच्च मांग के कारण हो रहा है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका सहित प्रमुख बाजारों को निर्यात कम हो रहा है।
- आशंकापूर्ण निवेश: आगे रुपये के और कमजोर होने की आशंका में आयातक लगातार डॉलर की मांग कर रहे हैं। वे अभी से ही अधिक-से-अधिक डॉलर खरीद रहे हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुख्य प्रभाव
- नकारात्मक प्रभाव
- आयातित मुद्रास्फीति: इसका कारण यह है कि भारत अपने कच्चे तेल (90%), खाद्य तेलों आदि का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है।
- सब्सिडी वृद्धि का बोझ: उर्वरकों के मामले में उच्च आयात कीमतों के कारण सरकार को अधिक सब्सिडी देनी पड़ेगी।
- विदेशी देनदारियों की उच्च लागत: जिन कंपनियों पर डॉलर-मूल्यवर्गित ऋण है, उन्हें उच्च ऋण भुगतान और ब्याज भुगतान लागत का सामना करना पड़ेगा।
- सकारात्मक प्रभाव:
- निर्यात प्रतिस्पर्धा: यह भारतीय निर्यात को वैश्विक बाजार में सस्ता और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है।
- विप्रेषण (Remittances): एक कमजोर रुपया विदेशों से आने वाले विप्रेषण को अधिक आकर्षक बना सकता है।
भारतीय रुपये के मूल्य को फिर से मजबूत करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
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