इस विधेयक का उद्देश्य भारत के उच्चतर शिक्षा संस्थानों (HEIs) को प्रभावी समन्वय के माध्यम से उत्कृष्टता प्राप्त करने हेतु सशक्त बनाना तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के उद्देश्यों को प्राप्त करना है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- इस विधेयक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956; अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) अधिनियम, 1987; तथा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) अधिनियम, 1993 को निरस्त करने का प्रावधान किया गया है।
- विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (VBSA) का गठन: उच्चतर शिक्षा के विनियमन हेतु कई संस्थाओं की जगह विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (VBSA) नामक एकल आयोग का गठन किया जाएगा। यह उच्चतर शिक्षा के विनियमन हेतु शीर्ष संस्था होगी।
- यह संस्था विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) जैसी वर्तमान संस्थाओं का स्थान लेगी।
- VBSA की संरचना: इसमें एक अध्यक्ष के अलावा अधिकतम 12 सदस्य होंगे। इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। इस आयोग में पदेन सदस्य और सदस्य सचिव भी होंगे।
- कार्यक्षेत्र: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, UGC, AICTE, NCTE आदि के अंतर्गत आने वाले सभी उच्चतर शिक्षा संस्थान, मानकों के निर्धारण हेतु विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान के अधिकार क्षेत्र में होंगे।
- विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान के अंतर्गत निम्नलिखित तीन परिषदों का गठन किया जाएगा:
- विकसित भारत शिक्षा विनियमन परिषद (विनियामक कार्यों हेतु)
- विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद (प्रत्यायन यानी मान्यता प्रदान करने हेतु)
- विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद (मानक निर्धारण हेतु)
- वास्तुकला परिषद (Council of Architecture – CoA): वास्तुविद अधिनियम, 1972 के अंतर्गत स्थापित यह परिषद भारतीय शिक्षा नीति 2020 की परिकल्पना के अनुसार एक पेशेवर मानक निर्धारण निकाय (Professional Standard Setting Body – PSSB) के रूप में कार्य करेगी।
- वित्तपोषण: केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित उच्चतर शिक्षा संस्थानों के वित्तपोषण को विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान के दायरे से बाहर रखने का प्रस्ताव किया गया है।
- अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने से संबद्ध शक्तियों में व्यापक वृद्धि: इस विधेयक/कानून के तहत स्थापित विनियमन परिषद, इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघनों के मामले में न्यूनतम 10 लाख रुपये से लेकर अधिकतम 2 करोड़ रुपये तक का दंड लगा सकेगी।