उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य बनाम अजमल बेग मामले में दहेज उन्मूलन संबंधी विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनका लक्ष्य दहेज की कुप्रथा से निपटना और दहेज प्रतिषेध अधिनियम (DPA) के माध्यम से इसके निषेध को लागू करना है।
उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश
- दहेज निषेध अधिकारियों (DPOs) की नियुक्ति: इन अधिकारियों को आवश्यक संसाधन प्रदान किए जाएं और इनके संपर्क विवरण प्रसारित किए जाएं।
- DPOs दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त सरकारी अधिकारी होते हैं।
- लंबित मामलों का शीघ्र निपटान: उच्च न्यायालयों से अनुरोध किया गया है कि वे मामलों के निपटान के लिए IPC की धारा 304B (दहेज हत्या) और धारा 498A (क्रूरता) से संबंधित मामलों की संख्या का जायजा लें।
- अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण: पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को समय-समय पर प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा, ताकि वास्तविक मामलों के प्रति संवेदनशीलता सुनिश्चित की जा सके। साथ ही, उन मामलों की भी पहचान की जा सके, जो तुच्छ प्रकृति के हो सकते हैं।
- अन्य: जिला प्रशासन द्वारा जमीनी स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाएगा; इस कुप्रथा के बारे में जागरूकता के लिए शिक्षा पाठ्यक्रम में बदलाव लाया जाएगा आदि।
भारत में दहेज प्रथा
- परिभाषा: दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार, “दहेज कोई भी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति है, जो विवाह के समय या उससे पहले या विवाह के किसी भी समय, विवाह के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई हो या देने के लिए सहमति हुई हो"।
- दहेज संबंधी अपराधों के तहत दर्ज मामले: NCRB के अनुसार, वर्ष 2023 में इन मामलों में 14% की वृद्धि देखी गई। देश भर में 15,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए और पूरे वर्ष 6,100 से अधिक दहेज संबंधी मौतें रिपोर्ट की गईं।
दहेज पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदम
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