राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने कहा कि सिलिका रेत खदानों से सिलिका रेत निकालने वाले श्रमिकों को सिलिकोसिस जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। सिलिकोसिस वस्तुतः फेफड़ों की बीमारी है, जो क्रिस्टलीय सिलिका धूल के सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंचने से होती है।
- NGT ने यह भी पाया कि सिलिका रेत वॉशिंग प्लांट्स में उचित रूप से रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। इसके अलावा, वैधानिक विनियामक कानूनों के पालन के मामले में लापरवाही भी बरतते हैं।
- सिलिका रेत के उत्पादन के लिए ओपन टेक्स्चर वाले बलुआ पत्थर या क्वार्टजाइट को क्रश किया जाता है। इसके बाद इसकी वॉशिंग की जाती है और आवश्यकता के अनुसार उसे अलग-अलग आकार में वर्गीकृत कर लिया जाता है।
रेत संसाधन के बारे में
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार रेत विश्व में जल के बाद दूसरा सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला प्राकृतिक संसाधन है।
- खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को गौण खनिज के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
रेत खनन के बारे में
- परिभाषा: रेत खनन को आगे प्रसंस्करण के लिए मूल्यवान खनिजों, धातुओं, क्रश्ड स्टोन, रेत और बजरी को निकालने हेतु प्राकृतिक पर्यावरण से प्राथमिक प्राकृतिक रेत व रेत संसाधनों को हटाने के रूप में परिभाषित किया गया है। यहां प्राकृतिक पर्यावरण में स्थलीय व नदीय पर्यावरण शामिल हैं।
- अवैध रेत खनन के लिए जिम्मेदार कारक: इसमें निर्माण कार्यों हेतु रेत की उच्च मांग; संगठित रेत माफिया; संधारणीय विकल्पों का अभाव आदि शामिल हैं।
अवैध रेत खनन के परिणाम
- बाढ़ और अवसादन: इसके कारण नदी के मार्ग में बदलाव से बाढ़ और अवसादन, उपजाऊ भूमि की हानि, बुनियादी ढांचे को नुकसान आदि होता है।
- भूजल स्तर में गिरावट: भूजल स्तर में गिरावट से कुएं भी प्रभावित होते हैं और जल की कमी हो जाती है।
- जैव विविधता की हानि: इससे जलीय पर्यावासों को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण नदी में पाई जाने वाली संकटग्रस्त प्रजातियों (जैसे घड़ियाल, ताजे जल में रहने वाले कछुए, ऊदबिलाव, नदी डॉल्फिन आदि) के समक्ष खतरा उत्पन्न हो जाता है।
अवैध रेत खनन से निपटने के लिए उठाए गए कदम
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