भोपाल गैस त्रासदी के बारे में
- 3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के स्वामित्व वाले एक कीटनाशक संयंत्र (Pesticide plant) से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस लीक हुई थी।
- इस त्रासदी के चार दशक बाद भी, UCIL के परिसर में सैकड़ों टन जहरीला अपशिष्ट वहीं मौजूद है।
- यह भारत की पहली बड़ी रासायनिक (औद्योगिक) आपदा थी।
भारत में घटित अन्य रासायनिक आपदाएं
- चेन्नई में अमोनिया गैस रिसाव (2024): यह चक्रवात मिचौंग के कारण गैस पाइपलाइन के क्षतिग्रस्त होने के कारण घटित हुई थी।
- विजाग गैस रिसाव (2020): यह विशाखापत्तनम में LG पॉलिमर्स केमिकल प्लांट में स्टाइरीन गैस रिसाव के कारण हुई थी।
- तुगलकाबाद गैस रिसाव (2017): यह कंटेनर में से केमिकल क्लोरो मिथाइलपाइरीडीन के लीक होने के कारण घटित हुई थी, जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने हेतु किया जाता है।
रासायनिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार कारण
- इसमें मानवीय, तकनीकी और प्रबंधन संबंधी त्रुटियों के कारण किसी प्रोसेस एवं सुरक्षा प्रणालियों की विफलता;
- प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव;
- खतरनाक अपशिष्ट प्रसंस्करण/ निपटान;
- आतंकवादी हमला/ विद्रोह के कारण तोड़फोड़ आदि शामिल हैं।
रासायनिक आपदाओं के प्रभाव
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: विषैले रसायनों के संपर्क में आने से महिलाओं के जनन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही, श्वसन संबंधी समस्याएं, कैंसर और आनुवंशिक उत्परिवर्तन भी देखने को मिल सकता है।
- पर्यावरण पर प्रभाव: इससे मृदा, जल एवं वायु प्रदूषण होता है, जिससे पारिस्थितिकी-तंत्र एवं जैव विविधता पर और बुरा असर पड़ता है।
- फसल पर प्रभाव: खतरनाक रसायनों के संपर्क में आने से पौधों की कोशिकाओं को क्षति पहुँचती है। इससे प्रकाश संश्लेषण और विकास अवरुद्ध होता है तथा उत्पादकता में कमी आती है।
- जैव संचयन: पर्यावरण में विषाक्त पदार्थ पहुंच कर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे जैव संचयन (Bioaccumulation) हो सकता है।
मिथाइल आइसोसाइनेट (CH3NCO) के बारे में
रासायनिक दुर्घटनाओं से निपटने के लिए उठाए गए कदम
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