दक्षिण कोरिया के बुसान में प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि अपनाने हेतु पांचवां सत्र आयोजित हुआ था। यह सत्र भी संधि पर देशों के बीच अंतिम सहमति बनाए बिना समाप्त हो गया।
- ज्ञातव्य है कि 2022 के संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के संकल्प के तहत प्लास्टिक प्रदूषण संधि का स्वरूप तैयार करने पर वार्ता की जा रही है।
- इस संधि में प्लास्टिक के पूर्ण उपयोग चक्र के प्रबंधन से संबंधित प्रावधान किए जाने हैं। इस चक्र में प्लास्टिक का उत्पादन, डिजाइन और निपटान शामिल हैं।
संधि को अंतिम रूप देने में समस्याएं
- प्लास्टिक के उत्पादन की अधिकतम मात्रा तय करना: यूरोपीय संघ, लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देश संधि में प्लास्टिक उत्पादन की अधिकतम मात्रा संबंधी लक्ष्य शामिल करने के पक्ष में हैं। भारत और चीन जैसे देश इसका विरोध कर रहे हैं।
- अस्पष्ट परिभाषा: कुछ प्लास्टिक रसायनों और उत्पादों के उपयोग की समाप्ति पर परिभाषाएं स्पष्ट नहीं हैं।
- संधि के ड्राफ्ट में प्लास्टिक और प्लास्टिक उत्पादों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया था, लेकिन इसमें माइक्रोप्लास्टिक, नैनोप्लास्टिक, प्राइमरी प्लास्टिक पॉलिमर और रीसाइक्लिंग की स्पष्ट परिभाषाएं नहीं दी गई थीं।
संधि के प्रति भारत का रुख
- विकास अवरुद्ध हो सकता है: भारत ने प्राइमरी प्लास्टिक पॉलिमर के उत्पादन को कम या प्रतिबंधित करने वाले किसी भी प्रावधान का समर्थन करने में असमर्थता जताई है। भारत का तर्क है कि इससे राष्ट्रों के विकास करने के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
- प्रतिबंध के दायरे को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना: भारत का कहना है कि संधि का दायरा केवल प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने तक ही सीमित होना चाहिए। पर्यावरण पर अन्य बहुपक्षीय समझौतों के प्रावधानों एवं विषयों को इसमें शामिल नहीं करना चाहिए।
- चरणबद्ध समाप्ति अवधि: भारत इस संधि में प्लास्टिक उत्पाद के उपयोग की चरणबद्ध समाप्ति तिथि (फेज आउट) से जुड़ी कोई भी सूची शामिल करने के पक्ष में नहीं है।
- सहायता: संधि के प्रावधानों में किसी देश की परिस्थितियों और क्षमताओं का भी उचित ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही, विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित वित्तीय और तकनीकी सहायता के प्रावधान भी शामिल किए जाने चाहिए।
प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में
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