इसका उद्देश्य तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1948 में संशोधन करना है।
- यह अधिनियम प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम के अन्वेषण एवं निष्कर्षण को विनियमित करता है।
इस विधेयक की मुख्य विशेषताओं पर एक नजर
- खनन परिचालनों से पेट्रोलियम परिचालनों को अलग करने का प्रावधान किया गया है।
- खनिज तेलों की परिभाषा का विस्तार किया गया है। इसमें मूलतः केवल पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस ही शामिल थे। अब इसमें प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन, कोल बेड मीथेन और शेल गैस/ ऑयल को भी शामिल कर लिया गया है।
- इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि खनिज तेलों में कोयला, लिग्नाइट या हीलियम शामिल नहीं होंगे।
- "पेट्रोलियम पट्टे" की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह खनिज तेल की पूर्वेक्षण, अन्वेषण, विकास, उत्पादन, उसे वाणिज्य योग्य बनाने, उसके परिवहन या निपटान के उद्देश्य से लिया गया पट्टा है।
- केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति: इसमें केंद्र की पट्टे, संरक्षण और रॉयल्टी को विनियमित करने की शक्तियां बरकरार रखी गई हैं। हालांकि, पट्टों का विलय करने, सुविधा केंद्र साझाकरण, पर्यावरण संरक्षण और विवाद समाधान के लिए भी प्रावधान जोड़े गए हैं।
- अधिनियम के कुछ प्रावधानों के उल्लंघन पर जेल भेजने जैसे दंडात्मक उपबंध खत्म कर दिए गए हैं। इसकी जगह आर्थिक जुर्माना लगाया जाएगा।
- जुर्माने के संबंध में निर्णय: न्यायनिर्णय प्राधिकारी के निर्णयों के खिलाफ अपील पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस विनियामक बोर्ड अधिनियम, 2006 में उपबंधित अपीलीय अधिकरण के समक्ष की जाएगी।
इस संशोधन का महत्त्व:
- इससे ऊर्जा की उपलब्धता और ऊर्जा सुरक्षा व किफायती ऊर्जा सुनिश्चित होगी;
- आयात पर निर्भरता में कमी होगी;
- ऊर्जा क्षेत्रक में निवेश के प्रवाह में वृद्धि होगी;
- मजबूत प्रवर्तन प्रणाली सुनिश्चित होगी आदि।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस विनियामक बोर्ड (PNGRB) के बारे में
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