RBI के बुलेटिन में भारत में सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया | Current Affairs | Vision IAS
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RBI के बुलेटिन में भारत में सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया

Posted 21 Feb 2025

13 min read

यह विश्लेषण केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पूंजीगत व्यय (Capex) में की जाने वाली वृद्धि को देखते हुए प्रस्तुत किया गया है।

  • एक सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता (Quality of Public Expenditure- QPE) सूचकांक तैयार किया गया है। यह सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता और उसके सामाजिक-आर्थिक परिणामों के बीच संबंध का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
  • QPE में GDP की तुलना में पूंजीगत व्यय का अनुपात, राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय का अनुपात, GDP की तुलना में विकास संबंधी व्यय का अनुपात, कुल व्यय और ब्याज भुगतान का अनुपात आदि शामिल किए गए हैं।

विश्लेषण के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

  • RBI ने 1991 से लेकर अब तक भारत के सार्वजनिक व्यय के रुझानों को निम्नलिखित छह चरणों में विभाजित किया है:
    • 1991-95 (उदारीकरण के बाद का चरण): इस अवधि में वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के लिए पूंजीगत और विकास व्यय में कटौती की गई थी।
    • 1996-2003 (FRBM के पूर्व के वर्ष): इस दौरान ऋण बोझ में वृद्धि हुई और सार्वजनिक निवेश में ठहराव की स्थिति देखी गई।
      • FRBM: राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन। 
    • 2003-08 (FRBM के कार्यान्वयन का काल): इस दौरान नियम-आधारित वित्तीय अनुशासन के कारण पूंजीगत व्यय में सुधार हुआ और ब्याज के भुगतान में कमी आई।
    • 2008-13 (वैश्विक वित्तीय संकट का दौर): प्रतिचक्रीय उपायों (Countercyclical measures) ने आर्थिक सुधार का समर्थन करते हुए राजकोषीय स्थिरता पर दबाव डाला। 
    • 2013-20 (GST और राजकोषीय हस्तांतरण): GST प्रणाली की शुरुआत हुई और उच्चतर राजकोषीय हस्तांतरण से व्यय प्राथमिकता में बदलाव हुआ।
    • 2020-25 (महामारी से निपटने का चरण): ऋण के उच्च स्तर के बावजूद अवसंरचना पर केंद्रित रिकवरी ने पूंजीगत व्यय को बढ़ाया। 
  • सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता में सुधार से आर्थिक प्रदर्शन में सुधार हुआ और बेहतर सामाजिक परिणाम भी प्राप्त हुए।
  • केंद्र सरकार के व्यय की गुणवत्ता का GDP में वृद्धि से अधिक जुड़ाव रहा है, जबकि राज्यों के व्यय की गुणवत्ता मानव विकास सूचकांक (HDI) पर अधिक प्रभाव डालती है।

सार्वजनिक व्यय की भूमिका:

  • सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं में सुधार: शिक्षा, स्वास्थ्य व अवसंरचना पर व्यय मानव संसाधन एवं उत्पादकता को बढ़ाते हैं।
  • निजी निवेश को बढ़ावा: यह मांग को प्रोत्साहित करता है और उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।
  • व्यापक आर्थिक स्थिरता: यह दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित करता है और वित्तीय अनुशासन को बनाए रखता है।
  • पूंजीगत व्यय का महत्त्व: पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देने से दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि को बल मिलता है।

उच्च सार्वजनिक व्यय के जोखिम:

  • इससे बजट घाटा बढ़ सकता है, ब्याज दरें ऊंची हो सकती हैं, राष्ट्रीय बचत में कमी आ सकती है और सरकार की विश्वसनीयता व निवेशकों का विश्वास प्रभावित हो सकता है।
  • Tags :
  • सार्वजनिक व्यय
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