यह आयातों पर निर्भरता कम करने और भारत की वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में स्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- भारत का सेमीकंडक्टर विनिर्माण उद्योग अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है और यह सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए ताइवान, चीन जैसे अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है।
- स्वदेशी चिप विकसित करने से राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ेगी, व्यापार घाटा कम होगा और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को बढ़ावा भी मिलेगा।
भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग
- भारतीय सेमीकंडक्टर बाजार: इसका मूल्य 2023 में लगभग 38 बिलियन डॉलर था, तथा 2030 तक इसका मूल्य 109 बिलियन डॉलर तक हो जाने का अनुमान है।
- संभावना: भारत का सेमीकंडक्टर उपभोग बाजार 2030 तक 13% की मजबूत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने की उम्मीद है।
चुनौतियां
- पूंजी-प्रधान क्षेत्रक: उदाहरण के लिए, एक सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने हेतु 10 बिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता होती है।
- कुशल कार्यबल का अभाव: भारत को सेमीकंडक्टर डिजाइन, विनिर्माण और परीक्षण में विशेषज्ञों की आवश्यकता है।
- कच्चे माल हेतु आयात पर निर्भरता: इस क्षेत्रक से संबंधित महत्वपूर्ण कच्चे माल जैसे सिलिकॉन वेफर और सेमीकंडक्टर चिप्स का आयात किया जाता है।
इस क्षेत्रक के लिए शुरू की गई पहलें
- सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम: इसका उद्देश्य घरेलू सेमीकंडक्टर उद्योग को प्रोत्साहन और रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से बढ़ावा देना है।
- इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन: इस मिशन का उद्देश्य एक सक्रिय सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम बनाना है, ताकि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण एवं डिजाइन के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभर सके।
- बड़ी कंपनियों के साथ साझेदारी: भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने के लिए माइक्रोन, फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों के साथ भागीदारी की गई है।