इस रिपोर्ट में अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान के संभावित प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, भारत सरकार तथा उद्योग हितधारकों के लिए घाटे को कम करने हेतु अलग-अलग कार्रवाइयों का प्रस्ताव किया गया है।
- अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान का उद्देश्य उन देशों पर उच्च टैरिफ लगाना है, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा है, ताकि व्यापार असंतुलन को कम किया जा सके।
अमेरिकी रेसिप्रोकल टैरिफ प्लान के प्रभाव
- भारत पर: भारतीय निर्यात पर मौजूदा 2.8% की तुलना में 4.9% का अतिरिक्त टैरिफ लग सकता है।
- अलग-अलग क्षेत्रकों पर प्रभाव:
- कृषि: कृषि निर्यात पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा तथा झींगा, डेयरी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर 38.2% तक का टैरिफ लगेगा।
- औद्योगिक सामान: फार्मास्यूटिकल्स, हीरे और आभूषण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पर सबसे अधिक जोखिम होगा।
- उदाहरण के लिए- फार्मास्युटिकल क्षेत्र पर 10.90% का टैरिफ अंतर जेनेरिक दवाओं की लागत बढ़ा सकता है। इससे भारतीय फार्मास्युटिकल उत्पादों की मांग प्रभावित होगी और प्रतिस्पर्धा भी कम होगी।
- न्यूनतम प्रभाव: पेट्रोलियम, खनिज और वस्त्र संबंधी उत्पाद अप्रभावित रह सकते हैं।
रिपोर्ट में की गई सिफारिशें
- अमेरिका के समक्ष अग्रिम टैरिफ प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहिए, मुक्त व्यापार समझौता (FTA) योजना को फिलहाल के लिए छोड़ देना चाहिए:
- भारत को टैरिफ लाइनों की पहचान करके शून्य-के-लिए-शून्य रणनीति का प्रस्ताव करना चाहिए। इससे भारत घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुंचाए बिना अमेरिकी आयातों के लिए टैरिफ को समाप्त कर सकता है।
- जवाबी उपायों को अपनाना: भारत को अनुचित रियायतों से इनकार करना चाहिए और चीन की प्रतिक्रिया के समान जवाबी उपायों पर विचार करना चाहिए।
- भारत और अमेरिका द्वारा बताए गए व्यापार डेटा में बड़े अंतर को सुलझाना: गलत आंकड़ों के आधार पर टैरिफ निर्णयों को रोकने का प्रयास करना चाहिए।