रिपोर्ट में समग्र आवास परिदृश्य, आवास योजनाओं का विश्लेषण तथा क्षेत्र में प्राथमिक ऋण संस्थानों की भूमिका पर भी चर्चा की गई है।
रिपोर्ट में प्रकाशित मुख्य बिंदु
- हाउसिंग लोन में बैंकों की हिस्सेदारी 81% है, जबकि हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFC) की हिस्सेदारी 19% है।
- ऋणों का वितरण (बकाया): व्यक्तिगत आवास ऋणों में मध्य आय समूह की हिस्सेदारी 43.45% है; आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) और निम्न आय समूह का हिस्सा 39% है तथा उच्च आय समूह (HIG) का 17% हिस्सा है।
- आवास ऋण (GDP के प्रतिशत के रूप में): यह वित्त वर्ष 2011-12 में 6.60% था, जो 2023-24 में बढ़कर 11.29% हो गया।
- ग्रीन बिल्डिंग: केवल 5% इमारतों को हरित के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
भारत में आवास क्षेत्रक में मौजूद चुनौतियां:
- हाउसिंग फाइनेंस के संदर्भ में मौजूद क्षेत्रीय असमानता: संचयी ऋण संवितरण में दक्षिणी राज्यों की हिस्सेदारी 35%, पश्चिमी राज्यों की 30%, उत्तरी राज्यों की 28%, पूर्वी राज्यों की 5.4% तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों की 0.68% रही है।
- जलवायु जोखिम: बाढ़, आगजनी और चरम मौसमी घटनाओं के प्रति बढ़ती सुभेद्यता के कारण भविष्य में टिकाऊ एवं ऊर्जा-कुशल भवनों की आवश्यकता होगी।
- ग्रीन बिल्डिंग से संबंधित मुद्दे: प्रमाणन निकायों की सीमित संख्या, मानक प्रमाणन ढांचे की कमी, भवन निर्माण सामग्री की उच्च लागत आदि।
अवसर
- तकनीकी उन्नति: उदाहरण के लिए- AI, डेटा एनालिटिक्स, प्रेडिक्टिव मॉडलिंग, 3डी प्रिंटिंग जैसी प्रौद्योगिकियां भवन निर्माण लागत को कम कर सकती हैं। साथ ही, आवासीय परियोजनाओं को गति भी दे सकती हैं।
- तरलता में वृद्धि: उदाहरण के लिए- रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (REITs) लघु निवेशकों को बड़े पैमाने की रियल एस्टेट परियोजनाओं में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं। ये प्रोजेक्ट्स निवेशकों के लिए अधिक लिक्विड निवेश विकल्प होते हैं, क्योंकि वे इन्हें आसानी से बेचकर नकदी प्राप्त कर सकते हैं।
- बजट प्रोत्साहन (2025-26): शहरी चुनौती निधि (Urban Challenge Fund), आवास क्षेत्रक के विकास को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय भू-स्थानिक मिशन आदि।
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