संशोधित मानदंड 1 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होंगे। गौरतलब है कि MSMEs के वर्गीकरण के लिए मानदंडों में संशोधन की घोषणा केंद्रीय बजट 2025-26 में की गई थी।
MSMEs के वर्गीकरण के लिए संशोधित मानदंड

MSMEs का महत्त्व
- रोजगार सृजन: देश में 5.93 करोड़ पंजीकृत MSMEs हैं। इनमें 25 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त है।
- आर्थिक उत्पादन: 2023-24 में MSMEs से संबंधित उत्पादों ने भारत के कुल निर्यात में 45.73% का योगदान दिया था।
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान: MSMEs का सकल मूल्य वर्धन (GVA) 2020-21 के 27.3% से बढ़कर 2022-23 में 30.1% हो गया।
- अन्य योगदान:
- ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में सहायता करते हैं,
- क्षेत्रीय असमानताओं को कम करते हैं, और
- राष्ट्रीय आय एवं संपत्ति का अधिक समान वितरण सुनिश्चित करते हैं।
MSMEs के समक्ष चुनौतियां
- बुनियादी ढांचे में कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है;
- अधिकतर MSMEs अनौपचारिक क्षेत्रक में हैं और उन्हें औपचारिक होने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है,
- नई तकनीकों को अपनाने में झिझक देखी जाती है,
- कच्चे माल की प्राप्ति और तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने (बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज) में कठिनाई आती है,
- ऋण और जोखिम पूंजी प्राप्त करने में समस्या आती है,
- बेचे गए उत्पाद के बदले भुगतान प्राप्त करने में लंबा इंतजार करना पड़ता है, आदि।
MSMEs के लिए शुरू की गई सरकारी पहलें
- उद्योग पंजीकरण पोर्टल: यह प्लेटफॉर्म उद्यमों के पंजीकरण को सुविधाजनक बनाता है।
- प्रधान मंत्री विश्वकर्मा योजना: इसका उद्देश्य कारीगरों और शिल्पकारों को समग्र समर्थन प्रदान करके उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी योजना है। इसका उद्देश्य गैर-कृषि क्षेत्रक में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोजगार के अवसर उत्पन्न करना है।
- पारंपरिक उद्योगों के पुनरुत्थान के लिए निधि योजना (SFURTI): इसका उद्देश्य पारंपरिक कारीगरों को क्लस्टर में संगठित करना है।