सुप्रीम कोर्ट अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। इस दौरान कोर्ट ने अधिकरणों से संबंधित प्रमुख मुद्दों, जैसे- कर्मचारियों की नियुक्तियां एवं सेवा शर्तों को भी रेखांकित किया है।
अधिकरण क्या हैं?
- अधिकरण अर्ध-न्यायिक (Quasi-judicial) निकाय होते हैं। ये विशिष्ट मामलों से संबंधित विवादों का फैसला करने के लिए गठित किए जाते हैं।
- संवैधानिक मान्यता: 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम ने संविधान में एक नया भाग XIV-A जोड़ा था। इस भाग में अनुच्छेद 323-A और 323-B शामिल किए गए थे।
- अनुच्छेद 323A: यह संसद को लोक सेवकों की भर्ती और उनकी सेवा शर्तों से संबंधित मामलों से निपटने के लिए प्रशासनिक अधिकरण गठित करने का अधिकार देता है। संसद केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर अधिकरणों का गठन कर सकती है।
- अनुच्छेद 323B: इसके तहत अन्य विषयों (जैसे- कराधान, भूमि सुधार आदि) के लिए अधिकरणों की स्थापना से संबंधित प्रावधान किए गए हैं। इन विषयों के लिए संसद या राज्य विधान-मंडल कानून बनाकर अधिकरणों का गठन कर सकते हैं।
अधिकरणों के कामकाज से जुड़े हुए मुख्य मुद्दे
- अधिकरणों की स्वतंत्रता: सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि चयन प्रक्रियाओं पर कार्यपालिका का प्रभुत्व, तकनीकी सदस्यों की मौजूदगी जैसे मुद्दे न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं।
- लंबित मामले: उदाहरण के लिये, 2021 तक केंद्र सरकार औद्योगिक अधिकरण सह-श्रम अदालतों में 7,312 मामले लंबित थे, और सशस्त्र बल अधिकरण में 18,829 मामले लंबित थे।
- अवसंरचनात्मक मुद्दे: उदाहरण के लिए- मानव संसाधन की कमी, बड़े पैमाने पर अधिकारियों और कर्मचारियों के रिक्त पद, खराब सेवा शर्तें आदि।
- क्षेत्राधिकार का अतिव्यापन (Overlapping): अधिकरणों की स्थापना से नियमित न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन हुआ है। इसके कारण भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है और संभावित संघर्ष पैदा होते हैं।
आगे की राह
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