बायोफ्यूल (जैव-ईंधन) एक तरह का नवीकरणीय ऊर्जा ईंधन है। यह बायोमास और जैविक अपशिष्ट जैसे जैविक स्रोतों से प्राप्त होता है।
- इसे मुख्यतः तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है: तरल बायोफ्यूल (इथेनॉल, बायोडीजल, बायो-मेथनॉल आदि), बायोगैस (Bio-LNG, Bio-CNG आदि) और ठोस बायोमास।
- भारत ने जनवरी 2025 तक पेट्रोल में 19.6% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इस प्रकार, यह अपने मूल लक्ष्य (2030) से 5 साल पहले 20% इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य तक पहुंचने की राह पर है।

बायोफ्यूल का महत्त्व
- ऊर्जा मांग की आपूर्ति: 2017-2040 के बीच निवल वैश्विक प्राथमिक ऊर्जा मांग वृद्धि में भारत का योगदान एक चौथाई से अधिक होगा।
- पर्यावरण पर प्रभाव: जैव ईंधन संवर्धन से CO2 उत्सर्जन में 519 लाख मीट्रिक टन की कमी लाने में मदद मिली है। साथ ही, 173 लाख मीट्रिक टन कच्चे तेल का विकल्प भी उपलब्ध हुआ है।
- ऊर्जा सुरक्षा: इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम ने देश की कच्चे तेल पर आयात निर्भरता को कम किया है तथा 85,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत की है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था: यह पूंजी निर्माण के लिए अपशिष्ट का उपयोग करके वेस्ट रीसाइक्लिंग को सक्षम बनाता है और व्यापक सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करता है।
- ग्रामीण विकास: कृषि अवशेषों/ अपशिष्टों के लिए बाजार के विकास के माध्यम से किसानों को अतिरिक्त वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है।
बायोफ्यूल के उत्पादन में मौजूद चुनौतियां
- फीडस्टॉक चुनौती: गुणवत्तापूर्ण फीडस्टॉक की कमी है और फीडस्टॉक की प्रतिस्पर्धी मांग से खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। बायोफ्यूल के संदर्भ में आपूर्ति श्रृंखला काफी जटिल एवं बिखरी हुई है।
- तकनीकी: एडवांस बायोफ्यूल के उत्पादन की व्यावसायिक व्यवहार्यता काफी सीमित है।
- वित्त-पोषण: उच्च पूंजीगत व्यय की आवश्यकता होती है और व्यापक लाभ भी निश्चित नहीं है।
बायोफ्यूल को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई मुख्य पहलें:
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 लागू की गई है;
- प्रधान मंत्री जी-वन (JI-VAN) योजना शुरू की गई है;
- गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन (गोबरधन/ GOBAR-Dhan) योजना संचालित की जा रही है;
- सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टूवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (SATAT) पहल शुरू की गई है आदि।