एपिजेनेटिक एडिटिंग आनुवंशिक इंजीनियरिंग संबंधी तकनीक है। इसके तहत जीन ट्रांसक्रिप्शन को निर्धारित करने के लिए एपिजीनोम में संशोधन या मॉडिफिकेशन किया जाता है। एपिजीनोम में संशोधन के तहत DNA अनुक्रम में बदलाव किए बिना जीन की गड़बड़ी को जड़ से ठीक किया जाता है।
- एपिजीनोम उन सभी रासायनिक यौगिकों और संशोधनों (जैसे मिथाइल ग्रुप या हिस्टोन मॉडिफिकेशन) को संदर्भित करता है, जो DNA अनुक्रम को बदले बिना जीन एक्सप्रेशन को विनियमित करते हैं।
- पारंपरिक जीन एडिटिंग के तहत DNA में काट-छांट की जाती है। एपिजीनोम एडिटिंग के तहत किए गए बदलाव को बाद में हटाया भी जा सकता है। इससे यह एक सुरक्षित विकल्प बन जाता है।
- एपीजेनेटिक प्रक्रियाएं मुख्य रूप से ट्रांस्क्रिप्शन के स्तर पर जीन एक्सप्रेशन को विनियमित करती हैं ।
- ट्रांसक्रिप्शन वह प्रक्रिया है, जिसमें जीन के DNA अनुक्रम की प्रतिकृति बनाकर उसे RNA अणु में परिवर्तित किया जाता है।
जीन एक्सप्रेशन को विनियमित करने के लिए एपिजेनेटिक प्रक्रियाएं/ मार्कर
- DNA मिथाइलेशन: इसके तहत DNA में मिथाइल ग्रुप को जोड़ा जाता है, जो ट्रांस्क्रिप्शन कारक को बंधन बनाने से रोककर जीन को निष्क्रिय कर देते हैं।
- हिस्टोन मॉडिफिकेशन (Histone Modification): DNA को बांधने वाले हिस्टोन प्रोटीन में रासायनिक बदलाव करके जीन एक्सप्रेशन को विनियमित किया जाता है।
- RNA-मीडिएटेड प्रोसेसेस: इसमें नॉन कोडिंग RNA का उपयोग कर जीन को विनियमित किया जाता है।
एपिजीनोम एडिटिंग के मुख्य उपयोग
- जटिल रोगों का उपचार: यह कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार और कई आनुवंशिक कारकों के कारण होने वाले मेटाबोलिक सिंड्रोम जैसी बीमारियों के लिए प्रभावी हो सकता है।
- रीजेनरेटिव मेडिसिन: इसकी मदद से स्टेम सेल थेरेपी में सुधार कर कोशिकाओं की वृद्धि और ऊतक पुनर्निर्माण को नियंत्रित किया जा सकता है।
- प्रतिरक्षा प्रणाली में आवश्यक बदलाव: यह एडवांस्ड कैंसर इम्यूनोथेरेपी के लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं के कार्यों को बेहतर और इष्टतम बनाता है।
- सुरक्षित और रिवर्सेबल जीन थेरेपी: यह स्थायी आनुवंशिक संशोधनों के जोखिम को कम करते हुए अधिक सटीक व नियंत्रित उपचार प्रदान करती है।
