यह जानकारी रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन: सोसाइटी एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित एक नए अध्ययन से सामने आई है। इसमें जम्मू-कश्मीर हिमालय में पर्माफ्रॉस्ट क्षरण से संबंधित खतरों के प्रभावों का आकलन किया गया है ।
- पर्माफ्रॉस्ट वह सतह होती है, जो लगातार कम-से-कम दो वर्षों तक पूरी तरह से 32°F या 0°C या उससे कम तापमान पर जमी रहती है।
इस अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 64.8% भाग को पर्माफ्रॉस्ट कवर किए हुए है।
- इसमें से 26.7% भाग सालों भर पर्माफ्रॉस्ट के रूप में रहने वाले क्षेत्र की श्रेणी में आता है।
- 23.8% भाग ऐसा पर्माफ्रास्ट क्षेत्र है, जहां आधे से ज्यादा जमीन जमी रहती है, लेकिन कुछ हिस्से गर्मियों में पिघल जाते हैं।
- 14.3% भाग ऐसा पर्माफ्रास्ट क्षेत्र है, जहां भूमि पूरी तरह से जमी हुई नहीं है, बल्कि कुछ-कुछ जगहों पर, या बीच-बीच में जमी हुई है।
- इसके तहत 332 प्रोग्लेशियल झीलों की पहचान की गई है। इनमें से 65 में हिमनदीय झील के तटबंध टूटने से आने वाली बाढ़ (GLOF) का जोखिम बना हुआ है। उदाहरण के लिए- चमोली (2021) और साउथ लोनाक (2023) आपदाएं पर्माफ्रॉस्ट क्षरण से जुड़ी हुई हैं।
- प्रोग्लेशियल झील का निर्माण तब होता है, जब पिघलते ग्लेशियर का जल किसी गर्त या गड्ढे में एकत्र हो जाता है या तटबंध से बाधित हो जाता है।
- अवसंरचना और सुरक्षा संबंधी जोखिम: लद्दाख में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई सड़कें पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं।
- जल विज्ञान संबंधी परिवर्तन: यह नदियों के प्रवाह और भूजल उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है।
- पर्माफ्रॉस्ट क्षरण के कारण:
- सतह का बढ़ता तापमान मुख्य कारण है;
- भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण पर्माफ्रॉस्ट को क्षति पहुंचती है;
- वनों की कटाई, रियल एस्टेट, बांध, सड़कें जैसी मानवीय गतिविधियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
आगे की राह
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