NPT, बहुपक्षीय संधि में एकमात्र बाध्यकारी प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है। इसका लक्ष्य परमाणु-हथियार संपन्न राष्ट्रों (NWS) द्वारा निरस्त्रीकरण और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना है।
परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के बारे में
- शुरुआत: इसे 1970 में लागू किया गया था।
- सदस्य: 191 देश।
- भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत के अनुसार यह संधि राष्ट्रों के बीच “परमाणु शस्त्र संपन्न” और “परमाणु शस्त्र विहीन” के रूप में भेदभाव करती है।
संधि के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर:
- प्रमुख सिद्धांत: अप्रसार; निरस्त्रीकरण और शांतिपूर्ण परमाणु प्रौद्योगिकी तक पहुंच।
- अप्रसार: संधि के पक्षकारों को परमाणु हथियार प्राप्त करने या हस्तांतरित करने से बचना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की भूमिका: संधि के अनुपालन को IAEA द्वारा किए गए निरीक्षणों के माध्यम से सत्यापित किया जाता है।
- वर्ष 1957 में IAEA की स्थापना संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। इसका उद्देश्य परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित, संरक्षित और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना है।
- संधि के संचालन की समीक्षा: प्रत्येक पांच वर्ष में की जाती है।
वर्तमान समय में NPT का महत्त्व
- परमाणु हथियारों के संदर्भ में बढ़ते खतरे: छोटे हथियारों, AI जैसी विकसित होती प्रौद्योगिकियों आदि के रूप में।
- परमाणु शस्त्रागार को मजबूत करना: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, अधिकांश देशों ने अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार किया है।
- परमाणु कूटनीति को कमजोर करना: उदाहरण के लिए, रूस ने व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT) के अपने अनुसमर्थन को वापस ले लिया है।

परमाणु निरस्त्रीकरण पर अन्य प्रमुख संधियां
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