एक नए क्लीनिकल ट्रायल में ऐसे आठ बच्चों का सफलतापूर्वक जन्म हुआ, जो अपनी माताओं से माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियां विरासत में ग्रहण करने के उच्च जोखिम में थे। यह सफलता माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन या माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी (MRT) के ज़रिए मिली है।
माइटोकॉन्ड्रियल रोग क्या है?
- माइटोकॉन्ड्रिया: ये हमारे शरीर की लगभग प्रत्येक कोशिका में मौजूद होते हैं और 90% से अधिक ऊर्जा पैदा करते हैं। इसलिए इन्हें कोशिका का "पावर प्लांट" कहा जाता है।
- माइटोकॉन्ड्रियल DNA: माइटोकॉन्ड्रिया का अपना DNA होता है, जो न्यूक्लियर DNA से अलग होता है। यह शरीर की ऊर्जा उत्पन्न करने में मदद करता है, लेकिन शारीरिक बनावट पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।
- माइटोकॉन्ड्रियल रोग: जब माइटोकॉन्ड्रिया ठीक से काम नहीं करते, तो कोशिकाओं में ऊर्जा की कमी हो जाती है जिससे वे मरने लगती हैं। जब अत्यधिक मात्रा में कोशिकाएं मर जाती हैं, तो शरीर की अंग प्रणाली विफल हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति की जान जा सकती है।
- माइटोकॉन्ड्रियल रोग केवल माता से बच्चे को विरासत में मिलते हैं।
माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन या माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी (MRT) के बारे में
- MRT की परिभाषा: यह इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) का एक नया रूप है। इसमें महिला के दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल DNA (mt-DNA) को डोनर महिला के स्वस्थ mt-DNA से बदला जाता है।
- MRT उपचार में बनने वाले भ्रूण में निम्नलिखित होते हैं:
- एक पुरुष और एक महिला (संभावित माता) से न्यूक्लियर DNA; तथा
- एक अन्य महिला (डोनर) का माइटोकॉन्ड्रियल DNA.
- चूंकि, पैदा हुए बच्चे में तीन व्यक्तियों का DNA होता है, इसलिए इसे ""थ्री-पैरेंट बेबी" कहा जाता है।
- तकनीकें: MRT में अलग-अलग प्रकार की तकनीकें शामिल हैं, जैसे मैटरनल स्पिंडल्स ट्रांसफर (MST), प्रोन्यूक्लियर ट्रांसफर (PNT) आदि।
