पैसिफिक रिंग ऑफ फायर
संयुक्त राज्य अमेरिका में अलास्का के नजदीक 7.3 तीव्रता के भूकंप के झटके महसूस किए गए। यह क्षेत्र अधिक भूकंपों वाले पैसिफिक 'रिंग ऑफ फायर' का हिस्सा है।
‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ के बारे में:

- यह प्रशांत महासागर के किनारों का एक ऐसा क्षेत्र (बेल्ट) है जो सक्रिय ज्वालामुखियों और लगातार आने वाले भूकंपों के लिए जाना जाता है।
- इस बेल्ट में संयुक्त राज्य अमेरिका (अलास्का), रूस, जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, न्यूजीलैंड सहित 15 से अधिक देश और अंटार्कटिका स्थित हैं।
- दुनिया में लगभग 90% भूकंप इसी क्षेत्र में आते हैं, और पृथ्वी पर 75% सक्रिय ज्वालामुखी यहीं स्थित हैं।
- यह क्षेत्र प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics) की प्रक्रिया के कारण बना है।
- इस क्षेत्र में दुनिया का सबसे गहरा महासागरीय गर्त ‘मारियाना ट्रेंच’ भी मौजूद है।
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ग्रुप ऑफ फ्रेंड्स (GOF)
भारत ने "ग्रुप ऑफ फ्रेंड्स (GOF)" की बैठक में ‘संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना सैनिकों’ के खिलाफ किए गए अपराधों में न्याय सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।
‘ग्रुप ऑफ फ्रेंड्स (GOF)’ क्या है?
- यह भारत के नेतृत्व में गठित एक समूह है।
- इसका मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना सैनिकों के खिलाफ होने वाली सभी हिंसात्मक गतिविधियों के लिए जवाबदेही तय करने में मदद करना है।
- इसे 2022 में शुरू किया गया।
- यह समूह ‘यूनाइटेड नेशन अलायन्स ऑफ सिविलाइजेशन’ (UNAOC) की एक प्रमुख शक्ति है और उसकी रणनीतिक योजना निर्माण एवं क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक
IIT कानपुर की एक टीम ने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार तकनीक की मदद से हरियाणा के यमुनानगर जिले में प्राचीन बौद्ध स्तूपों और जमीन के नीचे दबी हुई संरचनाओं का पता लगाया है।
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक क्या है?
- यह हाई-रिज़ॉल्यूशन वाली जियोफिजिकल तकनीक है। यह हाई फ्रीक्वेंसी वाली विद्युत-चुंबकीय तरंगों का उपयोग करके भूमिगत संरचनाओं का पता लगाती है।
- ये तरंगें जमीन के नीचे की अलग-अलग वस्तुओं (जैसे मृदा, शैल, या दबी हुई वस्तुएं) से टकराकर वापस आती हैं, मुड़ती हैं, या बिखर जाती हैं। इन वापस आती हुई तरंगों का अध्ययन करके जमीन के नीचे क्या है, इसका पता लगाया जाता है।
- गहराई की सीमा: आमतौर पर यह लगभग 10 मीटर की गहराई तक ही वस्तुओं का पता लगा सकती है।
- मुख्य उपयोग:
- आधार शैल (बेडरॉक), भौम जल स्तर और मृदा परतों की गहराई तथा दबी हुई जल-धाराओं, गुहा और दरारों का पता लगाने में उपयोगी है।
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जनजातीय जीनोम परियोजना
गुजरात राज्य सरकार ने वंशानुगत बीमारियों की समस्या से निपटने के लिए भारत की पहली जनजातीय जीनोम परियोजना शुरू की है।
‘जनजातीय जीनोम अनुक्रमण परियोजना’ क्या है?
- उद्देश्य: जनजातीय समुदायों में आनुवंशिक बीमारियों की पहचान करना और उन्हें सटीक स्वास्थ्य-देखभाल सेवा उपलब्ध कराना।
- परियोजना क्षेत्र: इस परियोजना के तहत गुजरात के 17 जिलों के 2,000 जनजातीय व्यक्तियों के जीनोम का अनुक्रमण (सीक्वेंस) किया जाएगा।
- कार्यान्वयन: इस परियोजना को गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (GBRC) लागू कर रहा है।
- मुख्य ध्यान: इस परियोजना के तहत सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया जैसी आनुवंशिक बीमारियों; और कुछ प्रकार के वंशानुगत कैंसर का शीघ्र पता लगाने और लक्षित उपचार प्रदान करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
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- जनजातीय जीनोम परियोजना
- गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (GBRC)
पुनर्वास का अधिकार (Right to Rehabilitation)
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ‘एस्टेट ऑफिसर, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण बनाम भूस्वामी’ वाद में निर्णय दिया कि ‘पुनर्वास का अधिकार मूल अधिकार नहीं है।’
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बारे में
- अनुच्छेद 21 की सीमा: भूमि अधिग्रहण मामलों में आजीविका से वंचित होना (Deprivation of Livelihood) अनुच्छेद 21 के अंतर्गत सुरक्षा पाने का कोई वैध आधार नहीं है।
- मुआवजा बनाम पुनर्वास: उचित मौद्रिक मुआवजा संविधान द्वारा सुनिश्चित की गई है, लेकिन कानूनी प्रावधानों के बाहर पुनर्वास की व्यवस्था करना राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं है।
‘पुनर्वास के अधिकार’ का सीमित दायरा:
- अमरजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य वाद (2010) में निर्णय दिया गया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अंतर्गत पुनर्वास को संवैधानिक अधिकार नहीं माना गया है।
- मध्य प्रदेश राज्य बनाम नर्मदा बचाओ आंदोलन वाद (2011) में निर्णय दिया गया कि ‘राज्य को वैकल्पिक आवास उपलब्ध कराने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।’
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- अनुच्छेद 21
- पुनर्वास का अधिकार
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम
कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs)
खगोलविदों ने मई 2024 में लद्दाख के आसमान के ऊपर दर्ज किए गए दुर्लभ नॉर्थेर्न लाइट्स के लिए उत्तरदाई शक्तिशाली कोरोनल मास इजेक्शन के रहस्यों को उजागर किया है।
- ध्यातव्य है कि कोरोनल मास इजेक्शन अपनी यात्रा के दौरान अपने ऊष्मीय व्यवहार (Thermal Behaviour) को बदलते हैं।
- शुरुआत में ये अधिक ऊष्मा उत्सर्जित करते हैं, लेकिन बाद में ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं जहाँ वे ऊष्मा को अवशोषित करते हैं और इसे रोक कर रखते हैं।
कोरोनल मास इजेक्शन के बारे में
- ये सूर्य के कोरोना से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र के बड़े विस्फोट होते हैं।
- ये अरबों टन कोरोनल पदार्थ को बाहर उत्सर्जित कर सकते हैं और इसमें एक समाहित चुंबकीय क्षेत्र भी होता है।।
- सबसे तेज कोरोनल मास इजेक्शन केवल 15–18 घंटे में पृथ्वी तक पहुँच सकते हैं, जबकि मंद गति वाले CME को पृथ्वी तक पहुंचने में कई दिन लग सकते हैं।
- जब ऐसे सौर विस्फोट पृथ्वी की ओर आते हैं, तो वे भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic Storms) उत्पन्न करते हैं, जो सैटेलाइट संचालन, संचार प्रणालियों और पावर ग्रिड को बाधित कर सकते हैं।
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कॉमन सर्विस सेंटर (CSC)
कॉमन सर्विस सेंटर-ई-गवर्नेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड (CSC SPV) ने डिजिटल इंडिया के 10 साल पूरे होने का उत्सव मनाया।
- इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री ने 10 लाख लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का निःशुल्क प्रशिक्षण देने की घोषणा की। इसमें सभी ग्रामीण स्तरीय उद्यमियों (VLEs) को प्राथमिकता दी जाएगी।
कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के बारे में
- शुरुआत: 2006 में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत शुरुआत की गई।
- विज़न: डिजिटल सेवाओं को सभी व्यक्तियों तक पहुँचाना और भारत में एक मजबूत ICT-आधारित नेटवर्क तैयार करना।
- CSC नेटवर्क का विस्तार
- 2014 में 83,000 कॉमन सर्विस सेंटर्स थे। आज पूरे भारत में 5.5 लाख से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर्स स्थापित हो चुके हैं।
- यह देश के लगभग 90% गांवों तक पहुँच चुके हैं।
- कॉमन सर्विस सेंटर पर उपलब्ध प्रमुख सेवाएं: आधार नंबर नामांकन और अपडेट, पैन कार्ड के लिए आवेदन, पासपोर्ट के लिए आवेदन, बैंकिंग और बीमा सेवाएं, आदि।
- गाँव स्तर के उद्यमी (Village Level Entrepreneurs: VLEs): ये जमीनी स्तर पर डिजिटल सेवाएं पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
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- गाँव स्तर के उद्यमी